________________
१०४०]
PRApronprn
उत्तराध्ययनसूत्रम्- [त्रयोविंशाध्ययनम् पदार्थान्वयः-लया-लता का-कौन सी वुत्ता-कही गई है इइ-इस प्रकार केसी-केशीकुमार गोयम-गौतम के प्रति अब्बवी-कहने लगे य-और तु-तदनन्तर बुवंत-बोलते हुए केसिं-केशीकुमार के प्रति गोयमो-गौतम स्वामी इणं-इस प्रकार अब्बवी-कहने लगे।
मूलार्थ हे गौतम ! लता कौन सी कही गई है । इस प्रकार केशीकुमार के कहने पर उसके प्रति गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा। .
टीका-पास में बैठी हुई जनता को समझाने के उद्देश्य से केशीकुमार श्रमण ने गौतम स्वामी से फिर पूछा कि हे गौतम ! वह लता कौन सी है कि जिसके फलों को विषरूप वर्णन किया गया है। तात्पर्य यह है कि जिस विष-लता को समूल घात करके आप शांतिपूर्वक विचर रहे हैं उसका स्वरूप क्या है ? तथा—बृहवृत्ति में उक्त गाथा के तृतीय चरण का पाठ-केसिमेवं बुवंतं तु' इस प्रकार से दिया गया है, परन्तु अर्थ में कोई अन्तर नहीं है। ___ अब गौतम स्वामी, उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए इस प्रकार कहते हैंभवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुच्छित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी! ॥४८॥ भवतृष्णा लता उक्ता, भीमा भीमफलोदया। तामुच्छित्य यथान्यायं, विहरामि महामुने ! ॥४८॥
_.. पदार्थान्वयः-भवतएहा-भव-संसार में तण्हा-तृष्णा लया-लता वुत्ताकही गई है भीमा-भीम है भीमफलोदया-भीम-भयंकर-फलों के देनेहारी तंउसका उच्छित्तु-उच्छेदन करके जहानायं-न्यायपूर्वक महामुणी-हे महामुने ! विहरामि-मैं विचरता हूँ।
..मूलार्थ–रे महागने ! संसार में तृष्णा रूप लता है जोकि बड़ी भयंकर और भयंकर फलों को देनेहारी है। उसको न्यायपूर्वक उच्छेदन करके मैं विचरता हूँ।
टीका केशीकुमार के प्रति गौतम स्वामी कहते हैं कि इस संसार में जो तृष्णा है वही विष-लता है, इसी लिये यह बड़ी भयंकर अथ च भयंकर फलों को