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________________ १०३२] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [प्रयोविंशाध्ययनम् पदार्थान्वयः-एगेजिए-एक के जीतने पर जिया-जीते गये पंच-पाँच पंचजिए-पाँचों के जीतने पर जिया-जीते गये दस-दश उ-फिर दसहा-दश प्रकार के शत्रुओं को जिणित्ता-जीतकर सव्वमत्तू-सर्व शत्रुओं को अहं-मैं जिणाम-जीतता हूँ णं-वाक्यालंकार में। मूलार्थ-एक के जीतने पर पाँच जीते गये, पाँचों के जीतने पर दश जीते गये, तथा दश प्रकार के शत्रुओं को जीतकर मैंने सभी शत्रुओं को जीत लिया है। टीका केशीकुमार के प्रति गौतम स्वामी कहते हैं कि मैंने पहले सब से बड़े शत्रु को जीत लिया, उसके जीतने के साथ ही चार और भी जीते गये, जब मैंने पूर्वोक्त पाँचों को जीता तब मैंने दश प्रकार के प्रधान शत्रुओं को भी जीत लिया, और जब मैंने दश प्रकार के प्रधान शत्रुओं को जीत लिया तब मैंने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली । तात्पर्य यह है कि जो शत्रु मेरी ओर धावा करके आ रहे थे उनको मैंने इस प्रकार से परास्त कर दिया । यहाँ इतना स्मरण रहे कि यह गाथा गुप्तोपमालंकार से वर्णन की गई है, क्योंकि वहाँ पर बैठी हुई जनता को इसके परमार्थ की अभी तक प्राप्ति नहीं हुई और वे इस ध्यान में लगी हुई है कि वे शत्रु कौन हैं ? और किस प्रकार जीते गये ? अतएव केशीकुमार ने इस बात को स्पष्ट करने के लिए फिर प्रश्न किया जोकि इस प्रकार है सत्तू य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी। तओ केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥३७॥ शत्रवश्च इति के उक्ताः, केशी गौतममब्रवीत् । ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु, गौतम इदमब्रवीत् ॥३७॥ पदार्थान्वयः-सत्तू-शत्रु य-पुनः के-कौन वुत्ते-कहे गये हैं ? इइ-इस प्रकार केसी-केशीकुमार श्रमण गोयम-गौतम के प्रति अब्बवी-कहने लगे तओतदनन्तर केसिं-केशीकुमार के वुवंतं-कहने पर उसके प्रति गोयमो-गौतम इणंइस प्रकार अब्बवी-कहने लगे तु-अवधारणार्थक में है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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