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________________ त्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दी भाषाटीकासहितम् । [ १०१६ टीका - केशीकुमार ने गौतम स्वामी के प्रति कहा कि―हे गौतम ! श्री पार्श्वनाथ स्वामी ने चातुर्याम — चार महाव्रतरूप धर्म कथन किया है और श्रीवर्द्धमान ने पाँच शिक्षारूप - पाँच महाव्रतरूप धर्म का प्रतिपादन किया है । यद्यपि धर्म संबन्धि नियम दोनों के एक ही हैं परन्तु संख्या में अन्तर — भेद है ! यह भेद क्यों ? जैसेकि अहिंसा सत्य अस्तेय और अपरिग्रह इन चार महात्रतरूप धर्म तो पार्श्वनाथ का है तथा अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह पाँच शिक्षारूप धर्म वर्द्धमान स्वामी का है। सो इनमें संख्यागत भेद स्पष्ट है । तथा " एगकञ्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? धम्मे दुविहे मेहावी, कहं विप्पञ्चओ न ते ॥ २४ ॥ एककार्यप्रपन्नयोः विशेषे किन्नु कारणम् । " धर्मे द्विविधे मेधाविन् ! कथं विप्रत्ययो न ते ॥२४॥ पदार्थान्वयः – एग – एक कज्ज - कार्य में पवन्नाणं - प्रवृत्त होनेवालों में विसेसे - विशेष भेद होने में किं- क्या ? नु-वितर्के कारणं - कारण है ? मेहावीहे मेधाविन् ! धम्मे-धर्म के दुविहे - दो भेद हो जाने पर कहूं - कैसे विप्पच्चओविप्रत्यय-संशय ते-तुझे न नहीं है । मूलार्थ — हे मेधाविन् ! एक कार्य में प्रवृत्त होने वालों के धर्म में विशेषमेद होने में कारण क्या है ? अथ च धर्म के दो भेद हो जाने पर आप को संशय क्यों नहीं होता ? टीका - केशीकुमार गौतम मुनि से कहते हैं कि हे गौतम ! जबकि भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर स्वामी ये दोनों ही तीर्थंकर हैं और दोनों का लक्ष्य भी एक अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति है तो फिर इनके धार्मिक नियमों में भेद क्यों ? हे मेधाविन् ! धर्म के दो भेद किये जाने पर क्या आपके मन में विप्रत्यय - अविश्वास उत्पन्न नहीं होता. ? तात्पर्य यह है कि जब दोनों का कार्य एक है तो उसके साधनभूत धर्म के नियमों में भेद क्यों किया गया ? क्या इस प्रकार, नियमों में परिवर्तन
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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