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________________ १००२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ त्रयोविंशाध्ययनम् यहाँ पर 'अथ' शब्द उपन्यास अर्थ में आया हुआ है, और सप्तमी के स्थान में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई हुई है। अब उनके प्रधान शिष्य गौतममुनि के विषय में कहते हैं— तस्स लोगपदीवस्स, आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं, विजाचरणपारगे ॥६॥ लोकप्रदीपस्य, आसीच्छिष्यो महायशाः । भगवान् गौतमो नाम, विद्याचरणपारगः तस्य ॥६॥ पदार्थान्वयः — तस्स - उस लोगपदीवस्स - लोक- प्रदीप का महायसे - महान् यश वाला सीसे - शिष्य आसि-हुआ भगवं- भगवान् गोयमे - गौतम नाम-नाम से प्रसिद्ध और विजा-विद्या चरण - चारित्र का पारगे - पारगामी | मूलार्थ - उस लोक-प्रदीप का, महान् यशवाला एक शिष्य था जो भगवान् 'गौतम' नाम से प्रसिद्ध और विद्या तथा चारित्र का पारगामी था । 1 टीका — जब भगवान् श्री वर्द्धमान स्वामी धर्मरूप तीर्थ की स्थापना कर चुके अर्थात् धर्मोपदेश करने में प्रवृत्त हो चुके थे, तब विद्या और चारित्र के पारगामी 'गौतम' इस नाम से विख्यात एक महान यशस्वी पुरुष उनके शिष्य हुए जोकि भगवान् के दस गणधरों— मुख्य शिष्यों में से प्रथम थे । उन्हीं का प्रस्तुत गाथा में उल्लेख किया गया है । यद्यपि इनका असली नाम इन्द्रभूति था और गौतम इनका गोत्र था परन्तु प्रसिद्धि इनकी गोत्र के नाम से ही हुई । इसलिए न्यायदर्शन के कर्त्ता गौतम, और बौद्धमत के प्रवर्तक गौतम बुद्ध से ये पृथक् तीसरे गौतम हैं'। ये जाति के ब्राह्मण और वेदादि शास्त्रों के पूर्णवेत्ता थे। इन्होंने भगवान् महावीर स्वामी के पास आकर उनसे शास्त्रार्थ किया और बहुत से प्रश्न पूछे । उनका यथार्थ उत्तर मिलने और अपने सम्पूर्ण संशयों की निवृत्ति हो जाने पर इन्होंने अपने आपको भगवान् के अर्पण कर दिया अर्थात् उनके शिष्य हो गये । उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली । ये भगवान् के प्रथम गणधर हुए । 1 " १ बहुत से इतिहास लेखकों ने इस विषय में बड़ी भूल खाई है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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