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द्वाविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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चामराहि-चामरों से सोहिओ-शोभित दसार-दशाई चक्केण-चक्र से तओ-तदनु सबओ-सर्व प्रकार से परिवारिओ-परिवृत हुआ ।
मूलार्थ-तदनन्तर ऊँचे छत्र, दोनों चामर और दशार्ह चक्र से सर्व प्रकार से आवृत हुए राजकुमार विशेष शोभा पा रहे थे।
टीका-जिस समय वासुदेव के सर्वप्रधान हस्ती पर राजकुमार अरिष्टनेमि आरूढ हो गये, तब उन पर एक बड़ा ऊँचा छत्र किया गया और दोनों ओर चामर झुलाये जाने लगे । समुद्रविजय आदि दशों भाइयों तथा अन्य यादवों से परिवृत हुए राजकुमार अपूर्व शोभा पाने लगे। तात्पर्य यह है कि समुद्रविजय आदि दशों यादवों का समस्त परिवार उनके साथ था और छत्र चामरों के द्वारा उनका उपवीजन हो रहा था। यहाँ पर इतना स्मरण रहे कि लोगों में जो यह जनश्रुति प्रचलित है कि ५६ कोटि यादव उस विवाहोत्सव में सम्मिलित हुए थे सो सर्वथा निराधार प्रतीत होती है क्योंकि उक्त गाथा में इसका उल्लेख नहीं है। उक्त गाथा से तो केवल दश भाइयों के परिवार का सम्मिलित होना ही सूचित होता है। अतः श्रद्धालु पुरुषों को शास्त्रमूलक कथन पर ही अधिक विश्वास रखना चाहिए ।
उस समय राजकुमार के साथ जो चार प्रकार की सेना थी, अब उसका वर्णन करते हैं
चउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कम । तुडियाणं सन्निनाएणं, दिव्वेणं गगणंफुसे ॥१२॥ चतुरङ्गिण्या सेनया, रचितया यथाक्रमम् । तूर्याणां . सन्निनादेन, दिव्येन गगनस्पृशा ॥१२॥
पदार्थान्वयः-चउरंगिणीए-चतुरंगिणी-चार प्रकार की सेणाए-सेना से जहक्कम-यथाक्रम से जिसकी रइयाए-रचना की गई है. तुडियाणं-वादित्रों के सन्निनाएणं-विशेष नाद से दिव्वेणं-प्रधान-शब्दों से गगणंफुसे-आकाश का स्पर्श हो रहा था।
मूलार्थ---उस समय क्रमपूर्वक रचना की गई चतुरंगिणी सेना से तथा वादित्रों के प्रधान शब्द से आकाश व्याप्त हो रहा था ।