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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[चतुर्दशाध्ययनम्
और उससे उत्पन्न होता है, उसी प्रकार वह जल में नहीं और उससे उत्पन्न होना चाहिए क्योंकि घृत का असत्त्व-न होना दोनों में जल और दुग्ध में समान है, परन्तु ऐसा होते आज तक किसी ने देखा नहीं । इससे सिद्ध हुआ कि पानी में घृत का कारण विद्यमान नहीं और दुग्ध में है । तब ज्ञात हुआ कि कारणरूप भाव नित्य है । और कारणरूप भाव से कार्यरूप भाव में व्यक्त होना ही उत्पत्ति है । ऐसी अवस्था में अभाव से भाव की उत्पत्ति वाला मन्तव्य युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता । जब कि यह सुनिश्चित हो गया कि असत् की उत्पत्ति नहीं होती तब फिर पृथिवी आदि पांच जड़ पदार्थों से जीव-चेतनसत्ता की उत्पत्ति की कल्पना भी निस्सार ही प्रतीत होती है । यदि यह जीव-चेतनसत्ता पृथिवी आदि किसी एक पदार्थ अथवा समवाय का कार्यरूप होवे तो उनमें उसकी उपलब्धि होनी चाहिए; परन्तु होती नहीं । इसलिए जड़ पदार्थ से चेतनसत्ता की उत्पत्ति का स्वीकार करना कुछ युक्तिसंगत नहीं है । अथच कौन से भूत से इस चैतन्यसत्ता की उत्पत्ति मानोगे ? क्योंकि वे सभी जड़ हैं अर्थात् मद्य आदि पदार्थ की तरह वे भी पांचों भूत जड़ सत्ता वाले हैं । इस प्रकार 'जब इन पांच भूतों में चैतन्य सत्ता का ही कारणरूप से अभाव है तो फिर उससे चैतन्यसत्ता की व्यक्ति-कार्यरूप में व्यक्त-प्रकट होना क्योंकर हो सकती है ? तात्पर्य कि चैतन्यसत्ता के ये पांच भूत कारण नहीं हो सकते । अथवा चैतन्यसत्ता इन पांच भूतों का कार्य नहीं है । किन्तु यह स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाला पदार्थ है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यदि यह जीव स्वतंत्र पदार्थ है तो इसका प्रत्यक्ष क्यों नहीं होता ? बस, इसका ही उत्तर प्रस्तुत गाथा में दिया गया है अर्थात् वह जीव अमूर्त-अरूपी है । इसलिये उसका चक्षु आदि इन्द्रियों के द्वारा प्रत्यक्ष नहीं होता क्योंकि चक्षु आदि इन्द्रियाँ रूपी पदार्थ का ही ग्रहण कर सकती हैं तथा जो अरूपी-वर्ण, गन्ध, रस आदि गुणों से रहित पदार्थ होता है वह नित्य होता है । अतः यह आत्मा भी नित्य है । तात्पर्य कि शरीर ग्रहण करने से पहले और शरीर के विनाश के बाद भी यह विद्यमान रहता है । तब प्रश्न होता है कि आकाश की तरह यदि आत्मा नित्य है तो उसके साथ कमों का सम्बन्ध कैसे हो गया ? इसके समाधान में शास्त्रकार कहते हैं कि आत्मा में रहने वाले जो मिथ्यात्वादि गुण हैं, वे ही इसके कर्मबन्ध के हेतु हैं ! जैसे आकाश के नित्य होने पर भी घटाकाश और मठाकाश