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एकविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[६२६ क्षेमेणागते चम्पायां, श्रावके वणिजि गृहम् । संवर्धते गृहे तस्य, दारकः स सुखोचितः ॥५॥
पदार्थान्वयः-खेमेण-कुशलता से चंपं-चम्पा में घर-घर को आगएआ गया सावए-श्रावक वाणिए-वणिक्-वैश्य तस्स-उसके घरे-घर में संबईवृद्धि को पाता है से-वह दारए-बालक सुहोइए-सुखोचित ।
___ मूलार्थ-वह वैश्यश्रावक कुशलतापूर्वक अपने घर में आ गया और वह बालक उसके घर में सुखपूर्वक वृद्धि को प्राप्त होने लगा।
टीका-बालक का जन्म होने के पश्चात् वह श्रावक अपनी स्त्री और पुत्र को साथ लेकर समुद्रमार्ग से कुशलतापूर्वक अपने घर में आ गया । समुद्र में जन्मा हुआ वह बालक भी उसके घर में सुखपूर्वक पालन-पोषण के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होने लगा अर्थात् बढ़ने लगा। विदेशयात्रा में अनेक प्रकार के कष्ट और विघ्न उपस्थित होते हैं । उस पर भी समुद्रयात्रा तो अधिक भयावह होती है। ऐसी विकट यात्रा से अपने परिवारसहित कुशलतापूर्वक घर में वापस आ जाना निस्सन्देह शुभ कर्मों के उदय का सूचक है। यह बात खेमेण' पद से ध्वनित होती है।
तदनन्तर वह बालक किस प्रकार का हुआ, अब इसके विषय में कहते हैंबावत्तरीकलाओ य, सिक्खिए नीइकोविए । जोव्वणेण य अफ्फुण्णे, सुरूवे पियदंसणे ॥६॥ द्वासप्ततिकलाश्च , शिक्षितो नीतिकोविदः । यौवनेन च आपूर्णः, सुरूपः प्रियदर्शनः ॥६॥
पदार्थान्वयः-बावत्तरी-बहत्तर कलाओ-कलाएँ सिक्खिए-सीख गया य-और नीइकोविए-नीतिशास्त्र का पंडित हो गया जोव्वणेण-यौवन से अप्फुण्णेपरिपूर्ण हो गया य-फिर सुरूवे-सुरूप और पियदंसणे-प्रियदर्शी बन गया।
मूलार्थ-तदनन्तर वह समुद्रपाल पुरुष की बहत्तर कलाओं को सीख गया और नीतिशास्त्र में भी निपुण हो गया तथा युवावस्था से सम्पन्न होकर वह सब को सुन्दर और प्यारा लगने लगा।