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उत्तराध्ययनसूत्रम् -
[ चतुर्दशाध्ययनम्
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कुछ भी कहा गया है वह किसी पर आक्षेप करने की बुद्धि से नहीं कहा गया । प्रत्युत वस्तुतत्त्व की यथार्थता को प्रतिपादन करने के उद्देश से कहा गया है । जैसे कि केवल वेद के अध्ययनमात्र से ही मोक्ष नहीं होता किन्तु 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः ' ज्ञान और तदनुकूल चारित्र के अनुष्ठान से मोक्ष होता है । अतः जो लोग केवल अध्ययन को ही मोक्ष का साक्षात् कारण मानते हैं उनका विचार युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता । यद्यपि किसी समय पर अध्ययन से भी मनुष्य को परम लाभ पहुँचता है, क्योंकि जिन शास्त्रों में सत्पदार्थों का निरूपण किया गया है, उनके अध्ययन से पुरुष के सम्यक्त्व की निर्मलता होती है परन्तु वेदों के पर्यालोचन से प्रतीत होता है कि उनमें पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का प्रतिपादन बहुत कम है । उदाहरणार्थ-अरूपी आकाश की भी उत्पत्ति वर्णित है । यथा - 'आत्मनः आकाशः संभूत' इत्यादि । इसी प्रकार ब्राह्मण भोजन के विषय में भी केवल पात्रापात्र का विचार करना ही शास्त्रकार को अभिप्रेत है । तात्पर्य कि पात्र और कुपात्र को देखकर ही मनुष्य को दान करने में प्रवृत्त होना चाहिये। जिस प्रकार सुपात्र में दिया हुआ दान उत्तम फल के देने वाला होता है, उसी प्रकार कुपात्रदान हीनफलअधोगति का कारण बनता है । इसलिए जो लोग ब्राह्मण कहलाते हुए भी हिंसक मार्ग के उपदेष्टा और यज्ञादि कार्यों में पशुवध आदि जघन्य कर्म के समर्थक तथा व्यभिचारनिमग्न हों, उनको दिया हुआ दान वा खिलाया हुआ भोजन कभी भी सुगति के देने वाला कहा वा माना नहीं जा सकता । अतः प्रस्तुत प्रकरण में शास्त्रकार ने सुपात्र दान का निषेध नहीं किया किन्तु कुपात्र दान का कटु फल बतलाया है । तथाच औरस पुत्र भी, मृत्यु के समय पर अपने माता पिता को किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकते किन्तु गृहस्थाश्रम में निवास करने वालों के लिये वह पुत्र कुलवृद्धि का हेतु तो अवश्य है । इससे उसको पारलौकिक दुःख की निवृत्ति में सहायक समझना भूल है । तात्पर्य कि जो लोग पुत्र को नरक से छुड़ाने वाला समझते हैं, वे शास्त्र के मर्म से अनभिज्ञ
हैं । अतः श्राद्धादि कर्म से भी पुत्र को रक्षक मानना युक्तिसंगत नहीं है । यहां
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पर वृत्तिकार ने 'तमं तमेणं' शब्द के 'णं' को वाक्यालंकार के अर्थ में ग्रहण किया है तथा किसी २ वृतिकार ने सप्तमी के स्थान में इसे तृतीया का रूप स्वीकार किया है परन्तु दोनों ही पक्षों में अर्थ में कोई भेद नहीं पड़ता ।
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