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एकोनविंशाध्ययनम् ]
हिन्दी भाषाटीकासहितम् ।
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मूलार्थ - -तपाया हुआ ताँबा, लोहा, लाख और सीसा - ये सब पदार्थ, कलकलाते और अति भयानक शब्द करते हुए मुझको परमाधर्मियों ने बलात्कार से पिला दिये ।
टीका — अब नरकसम्बन्धी अन्य रोमांचकारी यातना का वर्णन करते हुए मृगापुत्र अपने माता-पिता से कहते हैं कि — तृषा की अत्यन्त बाधा होने पर जब मैंने जल की प्रार्थना की तो जल के बदले उन परमाधर्मियों ने बड़ी निर्दयता के साथ रोते और चिल्लाते हुए मुझको तपाया हुआ ताम्र, लोहा, त्रपु — कली और सीसा पिघलाकर बलात्कार से पिला दिया । उसके पिलाने से मुझे जो वेदना हुई, उसकी कल्पना करते हुए भी शरीर रोमांचित हो उठता है । अतएव इन दुःखों से सर्वथा छूटने का मैं प्रतिक्षण उपाय सोच रहा हूँ ।
जिन प्राणियों को इस लोक में मांस अधिक प्रिय होता है और जिनकी उदरपूर्ति के लिए प्रतिदिन लाखों अन्नाथ प्राणियों को मृत्यु के घाट उतारा जाता है, उन प्राणियों की नरकों में क्या दशा होती है और वे किन २ नरकयातनाओं का अनुभव करते हैं; अब अर्थतः इसी विषय का प्रतिपादन किया जाता है
तुहं पियाई मंसाई, खण्डाई सोल्लुगाणि य । खाविओमि समंसाई, अग्विण्णाई णेगसो ॥७०॥
तव प्रियाणि मांसानि खण्डानि सोल्लकानि च । खादितोऽस्मि स्वमांसानि, अग्निवर्णान्यनेकशः
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पदार्थान्वयः — तुहं - तुझे पिया - प्रिय थे मंसाई - मांस के खण्डाई - खंड - और सोल गाणि - भुना हुआ मांस [ कबाब ] अतः समसाई - स्वमांस —— मेरे शरीर का मांस खाविओमि - मुझे खिलाया अग्विण्णाई - अभि के समान तपा करके अगसो - अनेक वार ।
मूलार्थ – मुझे माँस अत्यन्त प्रिय था, इस प्रकार कहकर उन यमपुरुषों ने मेरे शरीर के माँस को काटकर, भूनकर और अग्नि के समान लाल करके मुझे अनेक वार खिलाया ।