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उत्तराध्ययनसूत्रम्- [ एकोनविंशाध्ययनम् कूवंतो कोलसुणएहिं, सामेहिं सबलेहि य । पाडिओ फालिओ छिन्नो, विप्फुरन्तो अणेगसो ॥५५॥ कूजन् कोलशुनकैः, श्यामैः शबलैश्च । पातितः स्फाटितः छिन्नः, विस्फुरन्ननेकशः ॥५५॥
___ पदार्थान्वयः-कूवंतो-आक्रन्दन करता हुआ मैं कोलसुणएहि-कोलशूकर और श्वानों के द्वारा जो सामेहि-श्याम य-और सबलेहि शबल हैं पाडिओभूमि पर गिराया गया फालिओ-फाड़ा गया छिन्नो-छेदा गया विप्फुरन्तो-इधर उधर भागता हुआ अणेगसो-अनेक वार ।
मूलार्थ-आक्रन्दन करते और इधर उधर भागते हुए मुझको श्याम, शबल शूकरों और कुत्तों से भूमि पर गिराया गया, फाड़ा गया और (वृक्ष की भाँति) छेदा गया।
__टीका-मृगापुत्र कहते हैं कि हे पितरो ! नरक में मुझे परमाधर्मी पुरुषोंयमदूतों ने बहुत कष्ट दिया । काले और सफेद शूकरों तथा स्वानों—कुत्तों का रूप धारण करके अपनी तीखी दाढ़ों से भूमि पर गिराया और जीर्णवस्त्र की तरह फाड़ दिया तथा वृक्ष की भाँति छेदन कर दिया। मैं अनेक प्रकार से इधर उधर भागता और रुदन करता था परन्तु मेरे इस भागने और रुदन करने का उनके ऊपर कोई प्रभाव न पड़ा । सूत्रों में १५ प्रकार के परमाधर्मी यमपुरुषों का उल्लेख है, जिनके द्वारा नारकी जीवों को नाना प्रकार की यातनाएँ दी जाती हैं।
___ अब नरक की अन्य यातना का उल्लेख करते हैंअसीहिं अयसिवण्णेहि, भल्लीहिं पट्टिसेहि य।। छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य, उववन्नो पावकम्मुणा ॥५६॥
असिभिरतसीकुसुमवणैः , भल्लीभिः पहिशैश्च । छिन्नो भिन्नो विभिन्नश्च, उत्पन्नः पापकर्मणा ॥५६॥ .
पदार्थान्वयः-असीहिं-खड्गों से अयसिवण्णेहि-अतसीपुष्प के समान