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एकोनविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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टीका - इस गाथा में बलभद्र नाम के राजा की सुग्रीव नामा राजधानी और उसकी मृगानाम की अग्रमहिषी का उल्लेख किया गया है । सुग्रीव नगर अनेक प्रकार के वनों उपवनों से सुशोभित था अर्थात् वह अनेक प्रकार के वृद्ध वृक्षों से आकीर्ण था और नानाविध क्रीड़ा के उद्यानों से युक्त था । जो उद्यान नागरिकों की क्रीड़ा के लिए निर्माण किए जाते हैं उन्हें 'आराम' कहते हैं । बलभद्र राजा की वहां पर राजधानी थी। वह राजा बड़ा ही न्यायसम्पन्न और प्रजाप्रिय था । उसकी मृगानाम्नी परमसुशीला और पतिव्रता भार्या थी ।
अब सन्तति के विषय में कहते हैं
तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्ते त्ति विस्सुए । अम्मापिऊण दइए, जुवराया
दमीसरे ॥२॥ विश्रुतः ।
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दमीश्वरः ||२|| बलसिरी - बलश्री नामा मियापुत्ते - मृगापुत्र त्ति - इस प्रकार विस्सुए - विख्यात हुआ अम्मापिऊण - माता पिता को दइ - प्यारा था जुवराया- युवराज था दमीसरे - दमीश्वर था ।
पदार्थान्वयः — तेसिं— उन दोनों का पुत्ते - पुत्र
तयोः पुत्रो बलश्रीः, मृगापुत्र इति अम्वापित्रोर्दयितः युवराजो
मूलार्थ - उन दोनों का 'बलश्री' नाम का पुत्र था किन्तु लोगों में वह 'मृगापुत्र' के नाम से विख्यात था, माता पिता को बड़ा प्यारा था । वह युवराज तथा दमीश्वर था ।
टीका — इन दोनों एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम 'बलश्री' रक्खा गया परन्तु संसार में वह 'मृगापुत्र' के नाम से विख्यात हुआ । कारण कि महाराजा - बलभद्र, राणी के स्नेह से जब उसे 'मृगापुत्र' कहकर पुकारने लगा तब लोगों में भी वह उसी नाम से पुकारा जाने लगा । मृगापुत्र अपने माता पिता को अतीव प्रिय था और युवराज की पदवी से वह अभिषिक्त किया गया था, तथा जो राजा लोग उद्धत थे उनके दमन करने में समर्थ होने से वह दमीश्वर कहलाता था । इसके अतिरिक्त भावी नैगमनय के अनुसार इन्द्रियों का दमन करने वाले जो साधु महात्मा हैं उनका