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________________ चतुर्दशाध्ययनम् ]- हिन्दी भाषाटीकासहितम् । [ ५८३ "पुंस्त्वमाssगम्य कुमारौ द्वावपि, पुरोहितः तस्य यशाच पत्नी । विशालकीर्तिश्च तथेषुकारः, राजात्र देवी कमलावती च ॥३॥ पदार्थान्वयः – पुम्मत्तं - पुरुष भाव में आगम्म - आकर कुमारदोवि - दोनों कुमार य - और पुरोहिओ - पुरोहित तस्स - उसकी जसापत्ती - यशा नाम वाली धर्मपत्नी य-तथा विसालकित्ती - विशाल कीर्ति वाला तह - उसी प्रकार इसुयारराया - इषुकार राजा त्थ - और उसी भवन में कमलावई - कमलावती नाम की उसकी पटरानी हुई | मूलार्थ - इषुकार नगर में छः जीव उत्पन्न हुए। जैसे कि पुरुष रूप में उत्पन्न होने वाले दोनों कुमार, पुरोहित और उसकी यशानाम्नी भार्या, इसी प्रकार इषुकार नामक विशालकीर्ति राजा और उसकी देवी कमलावती रानी उत्पन्न हुई । टीका - देवलोक से च्यव कर छः जीव निम्न प्रकार से इषुकार नगर में उत्पन्न हुए । यथा—प्रथम इषुकार नाम का विशालकीर्ति वाला राजा, दूसरी उसकी कमलावती देवी, तीसरे भृगुनाम के पुरोहित और चौथी उनकी यशा नाम्नी भार्या एवं इनके घर में पुरुष रूप से उत्पन्न होने वाले दोनों कुमार ऐसे छः जीव उत्पन्न हुए । अपिच कुमार शब्द अविवाहित और अनभिषिक्त दोनों के लिये प्रयुक्त होता है । यथा जिसका विवाह न हुआ हो उसको भी कुमार कहते हैं तथा जिसका राज्याभिषेक न हुआ हो उसको भी कुमार के ही नाम से बोलते हैं, जैसे कि राजकुमार इत्यादि । परन्तु यहां पर तो अविवाहित अर्थ में ही कुमार शब्द प्रयुक्त हुआ है । 'त्थ - अत्र' यहां पर अकार का सन्धि करके लोप किया गया है। अब प्रथम उन दोनों कुमारों के विषय में कहते हैं
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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