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________________ चतुर्दशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [५७६ सहित साधुओं का बहुत उपहास किया करते हैं । इसलिए आपने यह आहारपानी ग्राम के बाहर जाकर ही कर लेना, जिससे कि किसी को भी आपके साथ अविनय करने का अवसर प्राप्त न हो सके । भृगु पुरोहित की इस बात को सुनकर वे दोनों साधु ग्राम से बाहर निकल कर उसी ओर चल पड़े जिधर कि वे बालक खेलने के लिए गए हुए थे । उन साधुओं को देखकर पुरोहित के वे दोनों बालक भयभीत होकर आगे २ भागने लगे और भागकर एक विशाल वृक्ष पर चढ़ गए । इधर साधुओं ने भी उस वृक्ष के नीचे प्रासुक-शुद्ध स्थान देखकर रजोहरण द्वारा उसकी प्रमार्जना करके विधिपूर्वक आहार करना आरम्भ किया । तब वृक्ष पर चढ़े हुए दोनों पुरोहितपुत्रों ने उन साधुओं की सब क्रिया को ध्यानपूर्वक देखा और देखकर वे विचार करने लगे कि इनके पास न तो कोई शस्त्र है . तथा न इनके पात्रों में कोई मांस आदि अशुद्ध पदार्थ है । किन्तु इनके पात्रों में तो प्रायः अपने ही घर का अन्न प्रतीत होता है । इस प्रकार विचार करने पर उनके मन का सब भय दूर हो गया। अधिक क्या कहें, इस प्रकार उक्त ऊहापोह करने के अनन्तर उनको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । जातिस्मरण ज्ञान होते ही उनका आत्मा वैराग्य के रंग से अतिरंजित हो गया । इसके अनन्तर वृक्ष से नीचे उतर कर उन्होंने उन दोनों मुनिराजों को विधिपूर्वक वन्दना की और अपना सब वृत्तान्त कह सुनाया। अन्त में उनसे प्रार्थना की कि भगवन् ! आप कुछ समय के लिए इषुकार नगर में निवास करने की कृपा करें । क्योंकि हम माता-पिता की आज्ञा लेकर आपके पास से मोक्ष के देने वाली पवित्र मुनिवृत्ति को धारण करने का विचार रखते हैं । कारण कि प्रत्येक आत्मा इस मुनि वृत्ति के द्वारा ही मोक्ष पद को प्राप्त करने में समर्थ होता है। हाँ, इसमें इतनी बात अवश्य है कि वह मुनि वृत्ति बाह्य चिह्नों के साथ हो अथवा अन्तरंग भावों में हो परन्तु इस आत्मा का जब भी मोक्ष होगा तो मुनि वृत्ति से ही होगा । अतएव हम चिरकाल से मुनि वृत्ति धारण करने के लिये उत्कण्ठित हो रहे हैं । कुमारों के इन विचारों को सुनकर मुनिराजों ने कहा कि जैसे तुम को सुख हो वैसे करें परन्तु इतना स्मरण रक्खें कि धर्मकृत्यों के अनुष्ठान करने में प्रमाद बिलकुल नहीं करना चाहिये । इसके अनन्तर वे दोनों कुमार उक्त मुनिराजों को यथाविधि वन्दना
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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