SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय __ श्री उत्तराध्ययन सूत्र जैनागम साहित्य का एक बहुमूल्य मणि-रलों से पूर्ण मूल आगम है। इस आगम में कथाओं, उपदेशों, निर्देशों आदि के माध्यम से धर्म और दर्शन का अल्प कलेवर में , सूक्ष्म और हृदय-स्पर्शी निरुपण हुआ है। उत्तराध्ययन सूत्र का स्थान मूल आगमों में है। इस .. आगम में भगवान महावीर की वाणी का मूल हार्द संग्रहीत है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र में बीज रूप में वे सभी रत्न संकलित हैं जो समग्र आगम वाङ्गमय में मौजूद हैं। सार रूप में कह सकते हैं कि वैदिक परम्परा में जो स्थान श्रीमद् भागवत गीता का है, ईसाइयों में जो स्थान बाइबिल का है और इस्लाम में जो स्थान कुरान का है, वही स्थान जिन परम्परा में श्री उत्तराध्ययन सूत्र का है। यह आगम एक ऐसा पुष्पाहार है जिसमें समस्त शुभ वर्णों के सुगन्धित पुष्प कुशल मालाकार की भांति संजोए और पिरोए गए हैं। - श्री उत्तराध्ययन सूत्र में धर्म के आधार-स्वरूप आचार-विचार और उनके प्रकारों पर तो विस्तृत और स्पष्ट चर्चाएं हुई ही हैं, साथ ही आत्मा, परमात्मा, जीवन, शरीर, आयुष्य आदि पर भी प्रखर प्रकाश डाला गया है। विनय को धर्म के धरातल के रूप में स्वीकार करके उसी के स्वरूप चिन्तन और विश्लेषण से उत्तराध्ययन में प्रवेश किया गया है। जैसे-जैसे हम उत्तराध्ययन में आगे बढ़ते जाते हैं हमारे समक्ष चिन्तन के असंख्य-असंख्य द्वार उद्घाटित होते जाते हैं। हमें ज्ञात होता है कि जिस जीवन के पंखों पर हम सवार हैं वह कितना अस्थिर असंस्कारित और अनिश्चित है। हमें ज्ञात होता है कि जीवन में क्या दुर्लभ है और उस दुर्लभ के सम्यक् उपयोग के सूत्र हमारे हाथों में आते हैं। वे सूत्र इतने सटीक, सहज और सरस हैं कि उन्हें पाकर हम गद्गद् बन जाते हैं। उपदेशों में इतनी तीक्ष्णता और हृदय-स्पर्शिता है कि अध्येता का जीवन आन्दोलित बन जाता है। ___ श्री उत्तराध्ययन सूत्र में कई कथाएं और दृष्टांत भी संकलित हैं। ये कहानियां और दृष्टान्त अध्येताओं के मानस को आन्दोलित करती हैं और वे अपने जीवन और उसकी दिशा, पर चिन्तन करने के लिए अन्तःस्फूर्त प्रेरणा से प्रेरित बनते हैं। श्री उत्तराध्ययन सूत्र तीर्थंकर महावीर की अन्तिम वाणी है। इस दृष्टि से भी इस आगम का विशिष्ट महत्व है। इसमें छत्तीस अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में जीवन और साधना के विभिन्न पहलुओं पर चिन्तन किया गया है और श्रेय पथ का निर्देश किया गया है। प्रस्तुत आगम के व्याख्याकार प्रस्तुत आगम श्री उत्तराध्ययन सूत्र (भाग प्रथम) के व्याख्याकार हैं स्वनामधन्य, जैनागम रलाकर, जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज | पूज्य आचार्य श्री का व्यक्तित्व और कृतित्व निश्चित रूप से किसी परिचय की अपेक्षा नहीं रखता। उनके बारे में कुछ भी लिखना सूरज को दीपक दिखाने के सदृश है। जैन-जैनेतर जगत के साथ-साथ कई पाश्चात्य विद्वान भी आचार्य श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व को देखकर अभिभूत बन गए। " सरिता में जैसे जल बहता है वैसे ही पूज्यश्री की प्रज्ञा में आगम प्रवाहित होते थे। उनका जीवन ।
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy