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विज्जुते, निग्घाते, जूयते, जक्खालित्ते, धूमिता, महिता, रतउग्घाते। दसविहे ओरालिते, असज्झाइए, पण्णत्ते, तं जहा—अट्ठिमंसं, सोणिते, असुतिसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराते, सूरोवराते, पडणे, रायवुग्गहे, उवसयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे।"
-स्थानांगसूत्र, स्थान, सू० ७१४ छाया—दशविधमान्तरिक्षकम् अस्वाध्यायिकं प्रज्ञप्तं, तद्यथा—उल्कापातः, दिग्दाहः, गर्जितं, विद्युत, निर्घातः, यक्षादीप्ते, धूमिता, महिता, रजउद्घातः। दशविधः औदारिकः अस्वाध्यायिकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अस्थिमांसशोणितानि, अशुचिसामन्त, श्मशानसामन्त, चन्द्रोपरागः, सूरोपरागः, पतनं, राजविग्रहः, उपाश्रयस्यान्ते औदारिकं शरीरकम् । तथा च पाठः___“नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहि महापाडिवएहिं सज्झायं करित्तए, तं जहा—आसाढपाडिवए, इन्दमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हपाडिवए, णो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चउहिं संझाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा—पढमाते, पच्छिमाते, मज्झण्हे, अड्डरत्ते, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चाउक्कालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा—पुव्वण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे।"
__ स्थानांगसूत्र, स्थान ४, उद्देश २, सू० २८५ छाया–नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा चतुर्भिः महाप्रतिपद्भिः स्वाध्यायं कर्तुम्, तद्यथा—आषाढीप्रतिपदः, इन्द्रप्रतिपदः, कार्तिकप्रतिपदः, सुग्रीष्मप्रतिपदः । नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा चतुर्भिः सन्ध्याभिः स्वाध्यायं कर्तुम्, तद्यथा—प्रथमाया, पश्चिमायां, मध्याह्ने, अर्धरात्रौं । कल्पते निर्ग्रन्थानां, निर्ग्रन्थीनां, चतुष्काले स्वाध्यायं कर्तुम्, तद्यथा—पूर्वाह्ने, अपराह्ने, प्रदोषे, प्रत्यूषे ।
भावार्थ-आकाश से सम्बन्ध रखने वाले कारणों से आकाश-सम्बन्धी दस प्रकार के अस्वाध्याय वर्णन किए गए हैं। जैसे उल्कापात (तारापतन), यदि महत् तारापतन हुआ हो तो एक प्रहर पर्यन्त शास्त्रों का स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। जब तक दिशा रक्त वर्ण की दिखाई पड़ती रहे तब तक भी शास्त्रीय स्वाध्याय नहीं करना चाहिए २। इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए। दो प्रहर पर्यन्त बादल गरजने पर ३, एक प्रहर पर्यन्त बिजली चमकने पर ४। दो प्रहर पर्यन्त कड़कने पर ५ । अर्थात् बादल के होने या न होने पर आकाश में घोर गर्जना हो, शुक्लपक्ष में बालचन्द्र होने पर तीन दिन पर्यन्त । प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया की रात्रि को एक-एक प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय न करना चाहिए ६ । आकाश में जब तक यक्षाकार दीखता रहे ७। धूमिका श्वेत ८ । धूमिका कृष्ण ६ । माघ आदि महीनों में धुंध जब तक रहे तब तक स्वाध्याय न करना चाहिए, विशेषतया वृष्टि होने पर १० । उक्त कारणों के उपस्थित होने पर शास्त्रों का स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। किन्तु गर्जना और विद्युत का अस्वाध्याय चातुर्मास में न मानना चाहिए, क्योंकि वह गर्जित और विद्युत-कार्य-ऋतु स्वभाव से ही प्रायः होता है, अतः आर्द्रार्क और स्वाति-अर्क तक अस्वाध्याय नहीं माना जाता।
दस प्रकार के औदारिक शरीर से सम्बन्ध रखने वाले कारणों के उपस्थित हो जाने पर भी
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 44 / स्वाध्याय