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.. किं ते ज्योतिः? किं वा ते ज्योति-स्थानं?, कास्ते सुवाः? किन्ते करीषांगम्? ।
• एधाश्च ते कतराः? शान्तिर्भिक्षो!, कतरेण होमेन जुहोषि ज्योतिः? || ४३ ।। - पदार्थान्वयः ते तुम्हारे, जोई—अग्नि, के–कौन सी है, के व ते—कौन सा तुम्हारे, जोइठाणे—अग्नि-स्थान अर्थात् कुंड है, का ते—कौनसा तुम्हारे सुया-सुवा है, व–और, किं—क्या, ते तुम्हारे, कारिसंगं—अग्नि को प्रदीप्त करने का साधन है, य–फिर, ते तुम्हारे, एहा–समिधा, कयरा—कौनसी है ? भिक्खू हे भिक्षो, संति—शांति-पाठ कौन सा है, कयरेण—किस, होमेण—होम से—हवन से, हुणासि-हवन करते हो, और, जोइं—ज्योति को तृप्त करते हो।
मूलार्थ हे भिक्षो! तुम्हारे (यज्ञ की) अग्नि कौन-सी है? और कौन-सा अग्नि कुण्ड है? कौन-सी युवा है? अग्नि को प्रज्वलित करने का साधन रूप कारिषांग क्या है? एवं समिधा कौन-सी है? और कौन सा शांति-पाठ है? किस हवन से तुम अग्नि को प्रसन्न करते हो?
टीका ब्राह्मणों ने मुनि से पूछा कि आपके मत में अहिंसामय आध्यात्मिक यज्ञ ही वास्तविक यज्ञ है तो बताइए कि यज्ञ में अग्नि कौन सी है और अग्नि-कुण्ड कौन-सा है? तथा जिससे अग्नि में आहुति दी जाती है वह स्रुवा (हाथ के आकार की लकड़ी की बनी हुई घृत डालने की कड़छी) कौन सी है? तथा अग्नि प्रचण्ड करने के लिए शमी आदि व मध-घतादि सामग्री कौन-सी है? एवं यज्ञ की समिधाएं अर्थात् लकड़ियां कौन-सी हैं? और आपके यज्ञ में कष्टों को दूर करने के लिए किया जाने वाला शांति-पाठ कौन-सा है? और किस हवन से आप अग्नि को प्रसन्न करते हैं?
ब्राह्मणों ने हरिकेशी मुनि से यज्ञ के जो उपकरण पूछे हैं, उनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उनके द्वारा आरम्भ किए हुए यज्ञ में जो उपकरण काम में आते थे, उसके अनुसार मुनि के द्वारा प्रदर्शित किए गए अहिंसात्मक यज्ञ में भी उनकी आवश्यकता होगी, तब उस यज्ञ में वे कौन और किस प्रकार के उपकरण हैं, यह जानना भी उनके लिए बहुत जरूरी है, इसलिए उन्होंने उक्त मुनि से, .. यज्ञ-सम्बन्धी उपकरणों के विषय में प्रश्न किया है जो कि परम आवश्यक प्रतीत होता है।
इसके अतिरिक्त प्रस्तुत विषय में एक बात और ध्यान देने के योग्य है वह यह कि उस समय तक यज्ञों में पशु-वध की प्रथा नहीं थी, अथवा बन्द हो चुकी थी। यदि होती तो उस यज्ञ में प्रवृत्त रहने वाले ब्राह्मणों के साथ मुनि के यज्ञ-सम्बन्धी जो प्रश्नोत्तर हुए हैं, उनमें पशु-वध का उल्लेख भी किसी न किसी प्रकार से अवश्य होता। परन्तु न तो मुनि ने ही इसकी अपने भाषण में कहीं पर चर्चा की है और न ही ब्राह्मणों ने उनके प्रति अन्य उपकरणों के साथ पश के स्थानापन्न पदार्थ को पछा है. अर्थात् 'किं ते पशुः' आपके यज्ञ में हवन के लिए पशु कौन सा है? ऐसा न तो ब्राह्मणों ने ही पूछा है
और न ही याज्ञिक हिंसा का वर्णन करते हुए मुनि ने उसकी चर्चा की है। तात्पर्य यह है कि यदि उस समय यज्ञों में पशु-वध की प्रथा होती तो जैसे प्रस्तुत सूत्र की ३८वीं और ३६वीं गाथा में मुनि ने आरम्भ किए हुए यज्ञ में मात्र अग्नि, जल और वनस्पति के जीवों का वध होने से उनके यज्ञ को
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् | 441 | हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं