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________________ है भागना और “गच्छति' का अर्थ है चलना। अतः जैसे अत्यन्त भागने से भविष्य में होने वाली हानि का विचार करने वाला पुरुष उसका त्याग करके अपनी स्वाभाविक गति की ओर आता हुआ मूर्ख कहलाने की अपेक्षा बुद्धिमान् कहलाता है, उसी प्रकार कुछ समय तक अपवाद मार्ग में आने वाला साधु भी शिथिलता के स्थान में अपनी बहुज्ञता का परिचय देता है। इसलिए अपवाद से उत्सर्ग में आना शिथिलता नहीं, किन्तु अपने लक्ष्य को निर्विघ्नता-पूर्वक प्राप्त करने के लिए एक प्रकार की सुविधा का सम्पादन करना है, तथा जैसे भागने से थका हुआ पुरुष कुछ समय के लिए धीरे-धीरे चलने लगता है और श्रम दूर हो जाने के बाद फिर भागना आरम्भ कर देता है, इसी प्रकार कभी भागते और कभी चलते हुए वह अपने गन्तव्य स्थान को प्राप्त कर लेता है, इसी भांति संयमशील साधु भी कभी उत्सर्ग से अपवाद और कभी अपवाद से उत्सर्ग, इस प्रकार यथा-शक्ति दोनों मार्गों का अनुसरण करता हुआ अपने गन्तव्य—मोक्ष-स्थान को प्राप्त कर लेता है। इसलिए अपवाद से उत्सर्ग और उत्सर्ग से अपवाद मार्ग में आने-जाने से संयमशील मुनि को कोई क्षति नहीं पहुंचती। ये दोनों ही मार्ग सापेक्ष अथच समान हैं। इनमें से किसी एक को न्यून या अधिक कहना अनेकान्तवाद की परिधि से बाहर है। अनेकान्तवाद की विस्तृत राजधानी के ये दोनों ही राजमार्ग हैं। इसलिए शास्त्रकारों ने इन दोनों को समान कक्ष में स्थान दिया है। साधु के लिए एक तरफ यदि सचित्त उदक के स्पर्श करने का निषेध है तो दूसरी तरफ विधि पूर्वक नदी पार करने की भी आज्ञा है। इसके अतिरिक्त सूत्रों के और भी कई एक अन्तरं भेद हैं। विस्तार भय से उन सब का यहां पर उल्लेख नहीं किया गया । पठन-विधि ऊपर जो सूत्रों के भेदों का वर्णन किया गया है, वह स्वाध्याय-प्रेमियों के लिए परम आवश्यक है। एक जिज्ञासु पुरुष को सूत्र और उसके अर्थ को भली-भांति समझने के लिए सूत्रों के अध्ययन का शास्त्र-विहित सारी विधि का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए तथा उपयोग-पूर्वक सूत्र-स्वाध्याय करने के साथ-साथ सूत्र-व्याख्या के प्रकारों को भी जान लेना परम आवश्यक है। शास्त्रकारों ने सूत्र-व्याख्या के निम्नलिखित छः प्रकार बताए हैं—१. संहिता, २. पद, ३. पदार्थ, ४. पद-विग्रह, ५. चालना और ६. प्रत्यवस्थान । (१) पदों के अस्खलित उच्चारण को संहिता कहते हैं, (२) नाम, आख्यात्, निपात, उपसर्ग और मिश्रित इनकी पद संज्ञा है। तात्पर्य यह है कि सुबन्त और तिङन्त को पद कहते हैं, (३) पद के अर्थ को पदार्थ कहते हैं, (४) अर्थ करते समय समस्त पदों का छेद–विभाग करना विग्रह कहलाता है, (५) शंका के उद्भावन को चालना कहते हैं, (६) सयुक्ति समाधान का नाम प्रत्यवस्थान है। इसके अतिरिक्त अनुयोगद्वार सूत्र में १. उपक्रम, २. निक्षेप, ३. अनुगम और ४. नय, ये चार और भी व्याख्या करने के प्रकार बताये गए हैं। इनका विवरण देखने की इच्छा रखने वाले मेरी लिखी हुई अनुयोगद्वार की "ज्ञान-प्रबोधिनी' भाषा व्याख्या को देखें। तथा सूत्रगत पदों की अर्थावगति के लिए श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 29 । प्रस्तावना
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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