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पूर्वक सातवें शुक्र देवलोक में देवता के रूप में उत्पन्न हुए। वहां से च्यव कर एक तो मिथिला के राजा पद्मरथ के रूप में जन्मा है और दूसरा तेरा पुत्र बनकर उत्पन्न हुआ है।
तेरे पुत्र को जब से वह राजा पद्मरथ नगर में ले गया है, तब से ही बहुत से शत्रु राजा उसके समक्ष स्वयं ही नमित हो गए हैं, अतः तेरे पुत्र का नाम 'नमि' रखा गया है। इस तरह हे धर्मप्रिये ! पद्मरथ और तेरा पुत्र पूर्वभव के बन्धु हैं।"
इस वार्ता की समाप्ति के अनन्तर ही एक देव अपने पूर्ण सौन्दर्य के साथ वहां आया और पहले मदनरेखा को प्रणाम कर पुनः उसने मुनि को नमस्कार किया। यह विपरीत कार्य देखकर मणिप्रभ विद्याधर हंसने लगा।
तब मुनि बोले-“हे मणिप्रभ! यह देव मदनरेखा के पूर्वभव का पति है और इसी की कृपा से यह देवता बना है। तदनन्तर देवता ने पूर्वभव का सर्व वृत्तान्त कहकर मदनरेखा से वाञ्छित अर्थ की याचना करने को कहा और उसने मदनरेखा की इच्छा के अनुसार उसे सुव्रता नाम की आर्या के पास दीक्षित करा दिया तथा स्वयं स्वर्ग को चला गया।
इधर मुनि के कथनानुसार ही कुमार का नाम 'नमि कुमार' रखा गया। युवा होने पर १०८ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। तदनन्तर राज्य के भारवहन में समर्थ जानकर राजा पद्मरथ ने उसे राज्य सिंहासन पर स्थापित किया और स्वयं दीक्षा धारण कर ली।
कुमार भी सुख-शान्ति-पूर्वक राज्य करने लगा। एक दिन कुमार की हस्तिशाला से सुभद्र जाति का श्वेतहस्ती मदान्ध होकर भाग गया और वह चन्द्रयश राजा. की राज्य-सीमा में चला गया, अतः राजा चन्द्रयश के सुभट उसे पकड़कर अपने राजा के पास ले आए। .
राजा नमि ने चन्द्रयश के पास दूत भेजकर समाचार कहलवाया कि हाथी को वापिस लौटा दो, परन्तु राजा चन्द्रयश ने यह कहकर कि ‘नमि राजा राजनीति से अनभिज्ञ है, जो वस्तु जिसके हस्तगत हो जाती है, वह उसी की हो जाती है' दूत को वापिस लौटा दिया। दूत के द्वारा समाचार सुनकर राजा नमि चतुरंगिणी सेना लेकर युद्धार्थ चल पड़ा । इधर चन्द्रयश भी पूरी तैयारी के साथ सम्मुख आ डटा और घोर संग्राम की तैयारी होने लगी। __आर्या मदनरेखा ने जब यह समाचार सुना तो वह गुरु की आज्ञा लेकर वहां आई। राजा नमि ने उसे विधि-पूर्वक नमस्कार किया और उसके पधारने का कारण पूछा। आर्या ने पूर्व सर्व वृत्तान्त सुनाकर कहा कि चन्द्रयश तुम्हारा बड़ा भाई है, अतः उससे युद्ध उचित नहीं है। उन्होंने चन्द्रयश को भी इसी प्रकार समझाया। तब तो दोनों भाई बड़े प्रेम से मिले । चन्द्रयश अपने छोटे भाई (राजा नमि) को राज्यभार सौंपकर स्वयं दीक्षित हो गए और कर्म-निर्जरा कर मोक्ष प्राप्त किया।
राजा नमि सुखपूर्वक दोनों देशों का राज्य करने लगे। एक बार राजा नमि के शरीर में भयंकर दाह ज्वर उत्पन्न हो गया। वैद्यों से उपचार न हो सका। अन्त में वैद्यों ने कहा कि बावना गोशीर्ष
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 302 / णवमं नमिपवज्जाणामज्झयणं