SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पक्ष में कार्पासादि, शिवचन्द्रादि शब्द चतुर्थ भंग के उदाहरण में लिए जाते हैं। यद्यपि सूत्र का सर्वसम्मत निर्दोष लक्षण तो यही है कि जिसके अक्षर अल्प हों और अर्थ विस्तृत हो, अतः उसका प्रथम विकल्प में ही समावेश हो जाता है। इस विकल्प में बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुत, निशीथ और सामायिक आदि सूत्र परिगणित किए जा सकते हैं। कारण कि इनके अक्षर तो अल्प हैं, परन्तु अर्थ बहुत विस्तृत है। यद्यपि पूर्वोक्त लक्षण इनमें सर्वाङ्ग-रूप से संघटित हो रहा है, तथापि अनेकान्तवाद के आश्रित होकर अन्य विकल्पों का विधान शास्त्र-सम्मत एवं युक्ति-युक्त ही . प्रतीत होता है। भेदोपभेद शास्त्रों में यद्यपि सूत्रों के अनेक भेदोपभेदों का वर्णन प्राप्त होता है, परन्तु मुख्य भेदसंज्ञा-सूत्र, कारक-सूत्र और प्रकरण-सूत्र इस प्रकार से तीन हैं। पुनः इनके उत्सर्ग, अपवाद, उत्सर्गापवाद और अपवादोत्सर्ग ये चार भेद और भी हैं। (१) संज्ञा-सूत्र—जिनमें वर्णनीय किसी भी पदार्थ का सामान्य रूप से निर्देश किया जाए, उनको संज्ञा-सूत्र कहते हैं। दशवैकालिकादि सूत्रों की गणना संज्ञासूत्रों में है, उदाहरणार्थ-“जे छेए से सागारिय परियाहरे तहा सव्वामगंधपरिन्नाय निरामगंधो परिव्वए'' अर्थात् जो बुद्धिमान है वह मैथुन को त्याग देता है, तथा सदोष वस्तु का त्याग करके निर्दोष वस्तु का सेवन करता है एवं ज्ञान-परिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान-परिज्ञा से त्याग करता हुआ अप्रतिबद्ध होकर विचरता है; यह संज्ञा-सूत्र है। (२) कारक-सूत्र-जिन सूत्रों में क्रियाकांड का विधान किया गया हो और साथ ही उपस्थित होने वाली शंकाओं का युक्ति-पूर्वक समाधान भी किया गया हो, उन्हें कारक सूत्र कहते हैं। यथा "अहाकम्मं भुंजमाणे समणे निग्गंथे कइ कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! आउवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ बंधति । से केणठणं भंते ! एवं वुच्चइ ?" इत्यादि। हे भगवन् ! आधाकर्मी आहार करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ किन कर्म-प्रकृतियों को बांधता है ? भगवान्—हे गौतम ! आधाकर्मी आहार को ग्रहण करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ आयुकर्म को छोड़कर सातों ही कर्म-प्रकृतियों को बांधता है। गौतम—हे भगवन् ! किसलिए ऐसा होता है इत्यादि इनका नाम कारक-सूत्र है। तात्पर्य यह है कि क्रिया-कांड के प्रतिपादक यावन्मात्र सूत्र हैं, उन सबकी कारक-सूत्रों में गणना की जाती है। (३) प्रकरण सूत्र—जिस सूत्र में वर्णनीय विषय और प्रकरण के अनुरूप ही अध्ययन का नाम निर्दिष्ट किया गया हो, उसे प्रकरण सूत्र कहते हैं। यथा—नमिप्रव्रज्या अध्ययन, गौतमकेशीय अध्ययन,और आर्द्रक अध्ययन, इत्यादि सब प्रकरण-सूत्र के अन्तर्गत हैं। नमि-प्रव्रज्या अध्ययन में. १. आचाराङ्गसूत्र। श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 26 / प्रस्तावना
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy