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________________ प्रस्तावना संज्ञा यद्यपि तीर्थंकर देव की वाणी द्वादशांगी के नाम से प्रसिद्ध है । ("दुवालसंगं गणिपिडगं”– समवायांग - नन्दी सू० १४ ) तथापि दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग का विच्छेद हो जाने से. वर्तमान काल में उपलब्ध ११ अंग, १२ उपांग, ४ छेद और ४ मूल तथा एक आवश्यक, इस प्रकार कुल ३२ सूत्र प्रामाणिक कहे व माने जाते हैं। इनमें आचारांगादि ११ अंग और औपपातिक आदि बारह उपांग हैं। व्यवहार, बृहत्कल्प, निशीथ और दशाश्रुत ये चार छेद सूत्र कहे जाते हैं तथा दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, अनुयोगद्वार और नन्दी इन चार की मूल संज्ञा है। इन चार को कालिक भी कहते हैं । चार अनुयोग और उनकी व्याख्या शास्त्र में चार अनुयोग प्रतिपादन किए गए हैं - १. चरणानुयोग, २. धर्मानुयोग, ३. गणितानुयोग और ४. द्रव्यानुयोग । इन चार अनुयोगों में ही पूर्वोक्त अंगोपांगादि समस्त जैनागम वर्णित हुए हैं। ओघनिर्युक्ति भाष्य में इस विषय से सम्बन्ध रखने वाली अर्थात् उक्त चारों अनुयोगों की विशेष रूप से व्याख्या करने वाली तीन गाथाएं दी गई हैं, जो कि निम्नलिखित हैं (9) चत्तारि उ अणुओगा, चरणे धम्मगणियाणुओगे य । दवियणुजोगे य तहा, अहक्कमं ते महंड्डिया ॥ ५ ॥१ ( २ ) सविसय बलवत्तं पुण, जुज्जइ तहवि य महिड्डियं चरणं । चारित्तरक्खणट्ठा जेणियरे, तिन्नि अणुओगा ॥ ६ ॥२ चरणपडिवत्ति हे ं धम्मकहा कालदिक्खमाईया दविए दंसण सुद्धी, दंसणसुद्धस्स चरणं तु ॥ ७ ॥३ । (३) 9. चत्वारस्त्वनुयोगाः, चरणं धर्मगणितानुयोगी च 1 द्रव्यानुयोगश्च तथा यथाक्रमं ते महर्द्धिकाः || ५ || २. स्वविषयबलवत्त्वं पुनर्युज्यते, तथापि च महर्द्धिकं चरणम् | चारित्ररक्षणार्थं येन इतरे त्रयोऽनुयोगाः ॥ ६ चरणप्रतिपत्तिहेतवः, धर्मकथाकालदीक्षादयः I द्रव्ये दर्शनशुद्धिः, दर्शनशुद्धस्य चरणं तु ॥ ७ ॥ ३. श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् / 10 / प्रस्तावना
SR No.002202
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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