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• नया चिन्तन]
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अचित्त पुद्गल : प्रकाश और ताप
अत्थिं णं भंते!अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोति? तवेंति? पभासेंति? हंता अत्थि।
कयरे णं भंते!ते अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोति? तवेंति? पभासेंति?
कालोदाई! कुद्धस्स अणगारस्स तेय-लेस्सा निसट्ठा समाणी दूरं गता दूरं निपतति, देसं गता देसं निपतति, जहिं जहिं च णं सा निपतति तहिं-तहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। एतेणं कालोदाई! ते अचित वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेति, तवेंति, पभासेंति ।
(भगवई 7/229, 230) - भंते! क्या अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं? उद्योतित करते हैं? तप्त करते हैं? प्रभासित करते हैं?
- कालोदायी! क्रुद्ध अनगार ने तेजोलेश्या का निसर्जन किया, वह दूर जाकर दूर देश में गिरती है, पार्श्व में जाकर पार्श्व देश में गिरती है। वह जहां-जहां गिरती है, वहां-वहां उसके अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभावित करते हैं। कलोदायी! इस प्रकार वे अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते है और प्रभावित करते हैं। अग्नि नहीं, अग्नि सदृश द्रव्य
. तत्थ णं जे से विग्गहगति समावन्नए नेरइए से णं अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा। (भगवई 14/54, 55) ... नारकक्षेत्रे बादरागिनकायस्याभावात्, मनुष्यक्षेत्रे एवं तद्भावत्, यच्चोत्तराध्ययनादिषु श्रूयतेहुयासणे जलतंम्मि दड्डपुव्वो अणेगसो। इत्यादि तदग्निसदृशव्यान्तरापेक्षयावसेयं, संभवन्ति च तथाविधशक्तिमन्ति द्रव्याणि तेजोलेश्याद्रव्यवदिति। (भगवई टीका 14/54,55) वायु के बिना अग्नि नहीं जलती .. न विणा वाऊयाएणं अगणिकाय उज्जलित। (भगवई 17/5)