________________
नया चिन्तन]
[41
नहीं हैं और उससे संबद्ध भी नहीं हैं। केवल मनुष्य का स्वतंत्र संकल्प उसका स्वलक्ष्य मूल्य है। इसलिए कर्तव्य के लिए ही हमारा कर्तव्य होना चाहिए'।
___ कर्तव्य के लिए कर्तव्य की बात बहुत ही मूल्यवान है। यह क्रियात्मक बात है, प्रतिक्रियात्मक नहीं। कोई व्यक्ति दया का पात्र है, उस पर कोई दया करता है तो यह कोई स्वतंत्र क्रिया नहीं है। प्रतिक्रिया है। यह मेरा धर्म है कि मैं प्राणीमात्र को अपनी आत्मा समझता हूं और उसके साथ मैत्री का व्यवहार करता हूं। यह स्वतंत्र कर्तव्य है, स्वतंत्र मूल्य है, क्रियात्मक कार्य है। यही आत्म-तुला का सिद्धान्त है।
मैं इसलिए प्रसन्न होऊं कि दूसरे ने मेरी प्रशंसा कर दी और इसलिए नाराज होऊं कि दूसरों ने मुझे गालियां दे दी - यह सारा प्रतिक्रियात्मक व्यवहार है। व्यवहार के स्तर पर जीने वाला प्रत्येक व्यक्ति सदा प्रतिक्रियात्मक व्यवहार करता है। क्रियात्मक व्यवहार करने का उसके साथ कोई दर्शन जुड़ा हुआ नहीं है।
___ अन्यथा व्यवहार के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इसका पहला सूत्र है - क्रियात्मक व्यवहार । जो व्यक्ति आध्यात्मिक है वह सदा क्रियात्मक व्यवहार करेगा, क्योंकि वह उसका धर्म है। उसने मेरा उपकार किया है तो मुझे उसको सहयोग देना चाहिए - यह उसका चिंतन नहीं होगा। वह सोचता है – कोई मेरा उपकार करे या न करे, मुझे सहयोग दे या न दे, मैं सदा दूसरों का उपकार करूंगा, सहयोग दूंगा। यह क्रियात्मक व्यवहार ही विश्व मैत्री का आधार है। इस संबंध में उपनिषद् की कथा विख्यात है। उपनिषद की कथा । .. आचार्य महाप्रज्ञ ने इस संबंध में एक विख्यात कथा को प्रेषित किया है। जाजली नाम के एक ऋषि घोर तप कर रहे थे। उनकी जटाएं बढ़ गई थीं। वे निश्चल खड़े थे। पक्षियों ने उनकी जटा में घोंसले बना लिए। उन्होंने अंडे दिए। अंडों से बच्चे निकले और वयस्क होकर उड़ गए। तब तक ऋषि ज्यों के त्यों खड़े रहे। तप के साथ-साथ अहं भी बढ़ता गया। मैंने कितना विकट तप तपा है ? यह भाव अहं को वृद्धिंगत करता है। प्रभुता पास में हो और अहंकार न हो, यह कब होता है ? ऐसा कौन व्यक्ति है जिसके पास प्रभुता है और अहं नहीं है ? ज्ञान का, सत्ता का, संपत्ति का, शक्ति का और प्रभुता का अहंकार होता है। तप का भी अहंकार होता है। तपस्वी का अहं पुष्ट होता जा रहा था। एक दिन देववाणी हुई - "जाजली! अभी तक तुम सधे नहीं हो। तुम तुलाधर वैश्य के पास जाकर सीखो।" यह सुनते ही ऋषि का