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जैन विद्या और विज्ञान का
सामान्य परिचय
जैन विद्या और विज्ञान .. जैन विद्या का अभिप्राय जैन दर्शन और जैन तत्त्व-ज्ञान से है। भगवान महावीर की वाणी जो चौदह पूर्वो में तथा आगमों में संकलित हुई है, वह ज़ैन-विद्या है। महावीर के बाद के आचार्यों ने अनेक विषयों को विस्तार दिया है। भाष्य, टीका आदि ग्रन्थों की रचना की है, वह भी जैन विद्या का ही अंश है। इनमें जीवन और जगत के प्रत्यक्ष और परोक्ष सभी विषयों पर गहरा चिंतन हुआ है। इसी चिंतन के परिणामस्वरूप जैन धर्म, दर्शन और संस्कृति विकसित हुई है। विज्ञान, भूगोल, खगोल, गणित आदि विषय भी इसी में सम्मिलित हुए हैं। ... जैन धर्म अत्यन्त प्राचीन एवं आध्यात्मिक धर्म हैं। जैन धर्म के अनुसार यह सृष्टि अनादि है और काल-चक्रीय है, वर्तुलीय है। अतः अतीत और अनागत दोहराते रहते हैं। प्रत्येक काल-चक्र के साथ अर्हतो-तीर्थंकरों के इसमें होने की परम्परा का इतिहास है। अर्हत् वे हैं, जिन्होंने राग-द्वेष दोनों से मुक्ति - पाई है। अर्हतों का प्रतीक सिद्धान्त अहिंसा रहा है। अहिंसा के इतिहास का प्राचीन होना स्वाभाविक है क्योंकि अहिंसा ने मानवीय सभ्यता को विकास का आधार दिया है। समता, सहिष्णुता, मैत्रीभाव, ये अहिंसा के प्रतिफल हैं, जिसे मानवीय जगत ने सदैव स्वीकार किया हैं। ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर जो चौबीसवें तीर्थंकर थे, उन्होंने अहिंसा सिद्धान्त को पुनर्जीवित कर प्रचार किया। अपरिग्रह, संयम और जीवन के प्रति परस्पर सहयोग और आदर की भावना को प्रचलित किया। महावीर 'जिन' थे (अर्थात् उन्होंने इन्द्रिय वासना को जीता था) अतः महावीर के अनुयायी जैन कहलाए।
जैन धर्म ने मानवीय स्वतन्त्रता को, आत्मा के कर्तृत्व को तथा पुरुषार्थ को महत्त्व दिया है। ज्ञान और चिन्तन में व्यापकता लाने के लिए तथा आग्रह बुद्धि की निवृत्ति के लिए अनेकान्त सिद्धान्त ने जैन दर्शन को प्रभावी बनाया है। वस्तु में अनेक धर्म होने के कारण, इसे जानने की विभिन्न दृष्टियों के