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आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व ]
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है, वह भाग सक्रिय हो जाता है। अभी तक मेडिकल साइंस शरीर की सीमा तक, मस्तिष्क की सीमा तक पहुंचा है। प्राण तक नहीं पहुंच पाया है।
डॉ. कलाम – हां, प्राण तक नहीं पहुंचे हैं। आचार्यजी! विद्यार्थियों में बहुत सारी समस्याएं जन्म ले रही हैं। तनाव और डिप्रेशन (मानसिक अवसाद) से ग्रस्त है आज का विद्यार्थी। अनेक छात्रों का दिमाग भी विकसित नहीं है। मेरे पास एक शोध छात्र शोध-कार्य कर रहा है। शोध का विषय है - अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चे एक चुनौती हैं। उन्हें कैसे ठीक करें? इस संदर्भ में हमने कुछ प्रयोग किए। विकसित और अविकसित बच्चों के दो ग्रुप बनाएं। दोनों ग्रुपों में दस बच्चे रखे गए। उन सबकी ‘एम.आर.आई.' कराई। हमने जानने का प्रयत्न किया कि उनकी शरीर-रचना में क्या कोई अंतर है? शरीर-रचना में कोई अंतर नहीं मिला। किंतु न्यूरोन एक्टिविटी में अंतर मिला, न्यूरोन कनेक्शन में भी अंतर मिला। अविकसित बच्चे के बायां पटल (लेफ्ट हेमिस्फियर) में न्यूरोन की संख्या कम पाई गई। न्यूरोन कनेक्शन भी कम थे। क्या हम दाहिनां पटल (राइट हेमिस्फियर) को जागृत करके लेफ्ट हेमिस्फियर की कमी को पूरा कर सकते है ? शरीर, मन, बुद्धि और चेतनाइन चारों को कैसे जगाएं? इस विषय में आपका क्या निर्देश है? ... महाप्रज्ञ - इनके साथ प्राण और भाव - दो और जोड़ दें।
डॉ. कलाम - आप ठीक कह रहे हैं। आचार्यजी! विदेह जनक और महर्षि अष्टावक्र अध्यात्म की उच्च भूमिका पर पहुंचे थे। मैं चेतना हूं और चेतना मैं हूं - उनके इस कथन का तात्पर्य क्या है? ___महाप्रज्ञ - हमारे मस्तिष्क के तीन विभाग हैं -
1. हायर कॉन्शियस माइंड 2. अनकांशियस माइंड 3. कांशियस माइंड।
महर्षि अष्टावक्र और विदेह जनक हायर कॉशियस माइंड की भूमिका पर थे।
डॉ. कलाम - क्या ब्रह्म से उनका सम्पर्क हो गया? . महाप्रज्ञ - प्रज्ञा, प्रातिभ ज्ञान अथवा अंतदृष्टि का जागरण हो गया।
डॉ. कलाम – हम इस तक कैसे पहुंचे? क्या महावीर सुपर कांशियस तक पहुंचे ?