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[जैन विद्या और विज्ञान
कर्तृत्व' पहली पुस्तक है जिसका सम्पादन 1980 में साहित्यकार श्री कन्हैयालाल फूलफगर के द्वारा हुआ। फूलफगर जी की दूसरी श्रेष्ठ सम्पादित पुस्तक 'आचार्य महाप्रज्ञ का रचना संसार सन् 2001 में प्रकाशित हुई। इसमें आचार्य महाप्रज्ञ के अद्यतन साहित्य साधना की समीक्षा हुई है। मुनि धनंजय कुमार की पुस्तक 'महाप्रज्ञ जीवन दर्शन 1996 में प्रकाशित हुई। लेखक ने श्रद्धाभाव से उल्लेख किया है कि 'महाप्रज्ञ का जीवन, श्रद्धा का, समर्पण का दस्तावेज है, प्रज्ञा और अंतर्दृष्टि का अभिलेख है, शांति और विधायक दृष्टि से परिपूर्ण जीवन का संदेश है। इस पुस्तक ने महाप्रज्ञ के वैचारिक, साहित्यिक और दार्शनिक व्यक्तित्व को प्रकट किया है। 2002 में 'महाप्रज्ञ दर्शन' नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसके विद्वान लेखक डा, दयानन्द भार्गव हैं। इसमें अन्य विषयों के साथ विज्ञान के भी उदाहरण सम्मिलित करते हुए एक. अध्याय 'सापेक्षता और अनेकान्त' पर लिखा है। आचार्य महाप्रज्ञ के विज्ञान सम्बन्धी साहित्य को देखते हुए यह अध्याय प्रारम्भिक किन्तु महत्वपूर्ण प्रयत्न है। लेखक ने आचार्य महाप्रज्ञ की दार्शनिकता के नवीन पहलुओं को एक नए दर्शन के रूप में प्रतिष्ठित किया है। 2003 में 'फाइडिग योर स्प्रिच्युवल सेण्टर' पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसमें अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओं का उपयोग हुआ है। यह अत्यंत आकर्षक चित्रों से सजाई गई है। इसमें आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य में से अनेक उपयोगी संदर्भो (Quotations) को उद्धृत किया है। पुस्तक देश-विदेश में लोकप्रिय हुई है। इसके संकलनकर्ता श्री रणजीत दूगड़ हैं। सन् 2004 के पूर्वाद्ध में आचार्य महाप्रज्ञ के ऋषभायण काव्य पर 'अनुकृति' पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसके लेखक कवि-हृदय श्री जतन लाल जी रामपुरिया हैं। श्री गोविन्द लाल जी सरावगी के सौजन्य से यह पुस्तक मुझे उस समय प्राप्त हुई जब मैं इस पुस्तक की प्रस्तावना लिख रहा था अतः इसका उपयोग हो सका है। यह पुस्तक भाषा, शैली, विषयवस्तु से श्रेष्ठ है तथा इसका आवरण पृष्ठ भी अत्यंत आकर्षक और सुंदर है। सन् 2005 में यह पुस्तक 'जैन विद्या और विज्ञान; संदर्भ : आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य' पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो रही है। पाठक गंण यह निर्णय ले सकेंगे कि मैं इस कार्य में उनके लिए कितना उपयोगी हो सका
मुझे इसका आभास है कि इस पुस्तक में मेरी लेखनी से साहित्यकार की भाषा और शैली सम्भवतः नहीं झलक पाई है लेकिन वैज्ञानिक की सत्यगवेषी दृष्टि निरन्तर बनी रही है। फिर भी इस पुस्तक की सभी कमियों का