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________________ आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व ] [321 नारद के सामने श्रीकृष्ण ने अपनी वेदना व्यक्त की - 'समस्याएं बढ़ रही हैं। जनता मे असंतोष बढ़ रहा है। कैसे करें इसका समाधान? यह समस्या बहुत कष्ट दे रही है। नारद ने कहा - 'कृष्ण! इसका समाधान आयस शस्त्र- लौह के शस्त्र से नहीं, अनायस-मृदुता के शस्त्र से होगा।' बाहर की समस्याओं के समाधान में लौह का शस्त्र काम देता है। भीतर की समस्याओं के समाधान में मृदुता का शस्त्र काम देता है। मधुर शास्त्र से ही यह समस्याएं सुलझेगी। डॉ. कलाम - स्वामीजी! आपका कहना सही है। गरीबी आदि समस्याएं मधुर शस्त्र से ही सुलझ सकती हैं। महाप्रज्ञ - आज की समस्या यह है - हम किसी भी समस्या पर दीर्घकालीन चिन्तन नहीं करते। इसके स्थायी समाधान की बात नहीं सोचते। शॉर्ट टर्म पॉलिसी पर चलते हैं। घाव हुआ और उस पर मरहम पट्टी कर दी। घाव एक बार तो ठीक हो जाएगा। समस्या आई और उसका तात्कालीक उपचार कर दिया। किंतु उसके स्थायी समाधान की बात नहीं सोचते। समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक दृष्टि की अपेक्षा है। यदि वैज्ञानिक दीर्घकालीन चिन्तन नहीं करते, तो प्रक्षेपास्त्रों का विकास नहीं होता। देश तकनीकी विकास में अग्रणी नहीं बन पाता। देश की समस्याओं के समाधान के लिए भी इसी वैज्ञानिक नीति का अनुसरण करना चाहिए। समस्याओं का तात्कालिक नहीं, स्थायी समाधान खोजना चाहिए। ____डॉ. कलाम - हमने बीस वर्षों में राष्ट्र को पूर्ण विकसित कर गरीबी को समाप्त करने की योजना बनाई है। पहले मैं एक वैज्ञानिक के रूप में यह कार्य करता था। अब एक राष्ट्रपति के रूप में मुझे यह कार्य करना है। मैं संसद के सहयोग से इस कार्य को करना चाहता हूं। ___ महाप्रज्ञ - अणुव्रत प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी ने धर्म और सम्प्रदाय की समस्या के संदर्भ में कहा था - धर्म को पहले स्थान पर और सम्प्रदाय को दूसरे स्थान पर रखा जाए तभी देश की समस्याओं का समाधान होगा। वर्तमान संदर्भ में मैं इसे इस प्रकार बदल कर कहना चाहता हूं - देश की समस्याओं का समाधान तभी होगा, जब राष्ट्र पहले स्थान पर और दल दूसरे स्थान पर रहें। - डॉ. कलाम - (अत्यंत भावविभोर होकर) स्वामीजी! आप सम्प्रदाय से ऊपर हैं। आपके पास आने वाले राजनेताओं, सामाजिक और धार्मिक नेताओं
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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