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________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान] [277 पीयुष ग्रन्थि के लिए यह कहा जाता हैं कि यह शारीरिक विकास के साथ, मनोबल, निर्णायक शक्ति स्मृति और श्रवण शक्ति का नियमन करती है। पीयुष ग्रन्थि की जागृत अवस्था विकास के लिए आवश्यक है। 2. थायरायड __ यह ग्रन्थि गले के मूल पर श्वास नली के ऊपर तथा आस-पास स्वर यंत्र के ठीक नीचे स्थित होती है। यह अग्रेजी के अक्षर H की तरह होती है जिसके दो भाग बीच के भाग (इसथेमस) से जुड़े रहते है। यह दो हारमोन्स स्रावित करती है (i) थाइरोक्सीन (आयोडीन युक्त हॉरमोन) (ii) थाइरोक्ल्सीटोनिन थाइरोक्सीन:- यह चयापचय के दर को नियंत्रित करता है। शरीर का ईंधन (भोजन) जो हम खाते है, उससे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए आक्सीजन की सहायता से भोजन पचाया जाता है। इस क्रिया को चयापचय कहते है। इस क्रिया को थाइरोक्सीन नियंत्रित करता है। इसकी कमी से कई रोग हो जाते हैं। यदि जन्म से या बचपन से इसकी कमी हो जाय तो व्यक्ति का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाता है। इसे क्रीटीन (Cretin) कहते है। वयस्कता के बाद इसकी कमी से Myxedema रोग हो जाता है। मनुष्य सुस्त तथा मोटा, झुर्सदार हो जाता है। थाइरोक्सीन का मूल रसायन आयोडिन है। रक्त के आयोडिन मुक्त कणों को अपनी और आकर्षित करने की इस ग्रन्थि में विशेष समता है। भय, क्रोध आदि संवेगों में इसका स्राव असन्तुलित हो जाता है। थायराइड की अधिकता से थाइरोक्टोसीकोसिस हो जाता है। जिसमें आंखे बाहर आने लगती है। गर्मी को बिल्कुल ही सहन नहीं कर सकता। स्वभाव चिड़चिड़ा व गुस्सैल हो जाता है। थायराइड ग्लैण्ड को विशुद्धि केन्द्र का स्थान कहा जा सकता 3. पेराथाइराइड .. थायराइड के पश्च भाग में यह चार छोटी-छोटी ग्रथिंया होती हैं इनके द्वारा स्रावित हारमोन पेराथोरमोन (Parathormone) कहलाता है। यह केल्सियम • के चयापचय को नियंत्रित करता है। केल्सियम केवल हमारी हड्डियों या दांतो के लिए ही आवश्यक नहीं है वरन् स्नायुओं के बीच के तथा स्नायुओं
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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