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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
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(ii) ग्रन्थियां आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान में ग्रन्थियों (Glands) से होने वाले स्रावों को महत्त्वपूर्ण कहा है। हम इन ग्लेण्डस के व्यवहार को शरीर शास्त्र की दृष्टि से चिन्तन करेंगे कि प्रेक्षा में ये किस प्रकार उपयोगी है। __हमारे स्नायुतंत्र के माध्यम से हमारी विभिन्न शारीरिक गतिविधियों में सामंजस्य बना रहता है। केवल स्नायु तंत्र ही हमारे शरीर की सभी क्रियाएं निर्धारित नहीं करते वरन् शरीर की वृद्धि तथा विभिन्न ऊर्जा उत्पादक क्रियाएं शरीर में उत्पन्न होने वाले कुछ विशिष्ट रसायनों (हारमोन्स) से भी नियंत्रित होती है जो विभिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में बनते हैं। ' शरीर में जो अंग स्राव पैदा करते हैं उन्हें ग्रन्थि कहा जाता है और जो ग्रन्थियां रसायन को सीधे रक्त वाहिनी में भेजती है उन्हें अन्त: स्रावी ग्रन्थि कहा जाता है। इन स्रावों का व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं, मनोदशाओं, व्यवहार, आचरणों पर प्रभाव पड़ता है। इनके स्राव जैव रासायनिक योगिक (Organic - Chemical Compounds) के रूप में होते है। स्राव को ग्रीक भाषा में हारमोन (Harmones) कहते हैं। अब हम ग्रन्थियों के सम्बन्ध में विस्तार से अध्ययन करेंगे। ग्रन्थियाँ कुल आठ हैं। .
> पीयूष ग्रन्थि » थायराइड > पेराथाइराइड > अंतस्रावी अग्नाशय » अधिवृक्क » थायमस. » वृषण अथवा डिंब ग्रन्थियां
> पीनियल। • कार्यप्रणाली - अन्तस्रावी ग्रन्थियों का मुख्य कार्य शरीर के आंतरिक वातावरण को बनाए रखना है। हाइपोथेलेमस के जरिए पीयूष ग्रन्थि अन्य सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के कार्य को नियंत्रित करती है।
___ हाइपोथेलेमस नाड़ी तंत्र अथवा कुछ रसायनों द्वारा पीयूष ग्रन्थि को हारमोन बनाने को प्रेरित करता है। इसके द्वारा स्रावित रसायन रीलीजिंग फैक्टर कहलाते हैं। इसे इस तरह से समझा जा सकता है।