SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन गणित और कर्मवाद] [ 229 . आधुनिक मनोविज्ञान में वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन आनुवंशिकता (हेरिडिटी) और परिवेश (एन्वार्यमेन्ट) के आधार पर किया जाता है। जीवन का प्रारम्भ माता के डिम्ब और पिता के शुक्राणु के संयोग से होता है। मनोविज्ञान के अनुसार व्यक्ति के आनुवंशिक गुणों का निर्धारण उसकी इकाई कोशिकाओं के अंदर स्थित गुणसूत्रों (Chromosomes) के द्वारा होता है। क्रोमोसोम अनेक जीनों (जीन्स) का एक समुच्चय होता है। एक क्रोमोसोम में लगभग पाँच हजार जीन माने जाते हैं। ये जीन ही माता पिता के आनुवंशिक गुणों के वाहक होते हैं। जीन की वैज्ञानिक व्याख्या के पश्चात कर्मवाद का विषय अस्पष्ट नहीं रहा है। कर्म वर्गणाओं में असंख्य स्पन्दन होते हैं। यह बुद्धिगम्य विषय नहीं माना जाता था किंतु जीन के आविष्कार से कर्म व्यवहार भी समझा जा सकेगा। मनोविज्ञान ने शारीरिक और मानसिक विलक्षणताओं की व्याख्या आनुवंशिकता और परिवेश के आधार पर की है, पर इससे विलक्षणता के संबंध में उठने वाले प्रश्न समाहित नहीं होते। : सीमाएं आचार्य महाप्रज्ञ ने मनोविज्ञान द्वारा प्रदत्त उपर्युक्त ज्ञान को महत्त्वपूर्ण माना है और इसका उपयोग करते हुए कर्म-शास्त्र के सिद्वान्त के महत्त्व को स्पष्ट किया है। फिर भी उनकी दृष्टि में मानसिक विलक्षणताओं के संबंध में आज भी अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं। क्या बुद्धि आनुवंशिक गुण है? अथवा परिवेश का परिणाम है? क्या बौद्विक स्तर को विकसित किया जा सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर कर्मशास्त्रीय दृष्टि से देना संभव है! कर्मशास्त्रीय दृष्टि से जीवन का प्रारम्भ माता-पिता के डिम्ब और शुकाणु के संयोग से होता है किन्तु जीव का प्रारम्भ उनसे नहीं होता। मनोविज्ञान के क्षेत्र में जीवन का प्रारम्भ और जीव का भेद अभी स्पष्ट नहीं है। अतः आनुवंशिकता का संबंध जीवन • से है, वैसे ही कर्म का संबंध जीव से है। इसलिए वैयक्तिक योग्यता या विलक्षणता का आधार केवल जीवन के आदि-बिन्दु में ही नहीं खोजा जाता, इससे परे भी खोजा जाता है, जीव के साथ प्रवहमान कर्म-संचय (कर्म-शरीर) में भी खोजा जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग जेनेटिक इंजीनियरिंग के सिद्धान्त के सम्बन्ध में कहते है कि इसके - अनुसार वैज्ञानिकों ने मनुष्य के स्वभाव की और आचरण की महत्त्वपूर्ण
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy