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________________ (xx) क्या आवश्यकता है ? उसे तो मात्र आत्मा के बारे में जानना चाहिए। अन्य जानकारियों से उसका क्या प्रयोजन? किंतु भगवान महावीर का चिंतन अनेकांतवादी है। वे अस्तित्व के एक छोर को ग्रहण नहीं करते किंतु सम्पूर्ण सत्य को अपने दृष्टिपथ में रखते हैं। उनके दर्शन में जैसा आत्मा का अस्तित्व मान्य है वैसा ही अचेतन का अस्तित्व है । अस्तित्व के स्तर पर उनको परस्पर न्यूनाधिक नहीं किया जा सकता । जैन दर्शन का आधारभूत सिद्धान्त है "जदत्थि णं लोगे तं सव्वं दुपओआरं, तं जहा - जीवच्चेव अजीवच्चेव' ( ठाणं 2 / 1 ) । लोक में जो कुछ है, वह सब द्विपदावतार है। इस संदर्भ में आचार्य महाप्रज्ञजी का वक्तव्य मननीय है "जैन दर्शन द्वैतवादी है। उसके अनुसार चेतन और अचेतन दो मूल तत्त्व हैं। शेष सब इन्हीं के अवान्तर प्रकार हैं। जैन दर्शन अनेकांतवादी है । इसलिए वह केवल द्वैतवादी नहीं है। वह अद्वैतवादी भी है। उसकी दृष्टि में केवल द्वैत और केवल अद्वैतवाद की संगति नहीं है। इन दोनों की सापेक्ष संगति है। कोई भी जीव चैतन्य की मर्यादा से मुक्त नहीं है अतः चैतन्य की दृष्टि से जीव एक है। अचैतन्य की दृष्टि से अजीव भी एक है। जीव या अजीव कोई भी द्रव्य अस्तित्व की मर्यादा से मुक्त नहीं है, अतः अस्तित्व की दृष्टि से द्रव्य एक है। इस संग्रहनय से अद्वैत सत्य है । चेतन में अचैतन्य का और अचेतन में चैतन्य का अत्यन्ताभाव है। इस दृष्टि से द्वैत सत्य है ।" जैन दर्शन की इस व्यापक स्वीकृति ने ही जैन विद्या एवं विज्ञान के पारस्परिक समन्वय के द्वार उद्घाटित किए हैं। - जैन दर्शन का चिंतन अध्यात्म या धर्म तत्त्वों तक ही सीमित नहीं है। उसमें जीवन के विभिन्न पक्षों का समायोजन भी हुआ है। जैन विद्या की विशाल ज्ञान राशि अध्यात्म, धर्म, आचार, तत्त्वचिंतन, ज्ञानमीमांसा, द्रव्यमीमांसा, गति-स्थिति के नियम, पुद्गल - परमाणु एवं ऊर्जा के नियम, तमस्काय, जीवों की सह-अवस्थिति, दिशा, काल, योग विद्या, आवेग संवेग, स्वास्थ्य आदि विभिन्न विषयों को अपने आकार में समेटे हुए हैं। इन विषयों की संवादिता आधुनिक विज्ञान के विषय भौतिकी (Physics), जैविकी (Biology), सृष्टिविद्या (Cosmogony), विश्वविज्ञान (Cosmology), मनोविज्ञान ( Psychology), परमाणु विज्ञान (Atomic Science), स्वास्थ्य विज्ञान ( Health Science), सामाजिक विज्ञान (Social Science) आदि विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के साथ है। जिनका तुलनात्मक अनुचिंतन दर्शन और विज्ञान दोनों को ही एक अभिनव दिशा प्रदान करने में सक्षम है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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