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गति विज्ञान
प्रकृति में सभी वस्तुएं गतिशील हैं। विषम ज्योतिर्पिण्ड हो या सूक्ष्म कण इलेक्ट्रॉन हो, सभी गति में संलग्न हैं। गति का अपना विज्ञान है।
जैन आगम साहित्य में गति संबंधी अनेक प्रकरण हैं। कुछ प्रकरण स्पष्टीकरण चाहते हैं। उनमें से एक रोचक प्रकरण को आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रस्तुत किया है। भगवती सूत्र में अधोलोक के इन्द्र चमर और ऊर्ध्व लोक के इन्द्र शक्र का संघर्ष अत्यंत रोमांचक घटनाक्रम है। यह पाठकों के अध्ययन हेतु प्रेषित है। घटना ___ एक बार अधोलोक के असुरों के इन्द्र (चमर), ऊर्ध्व लोक के इन्द्र (शक्र) के पास पहुंचकर उसकी निंदा-आशातना करने लगा क्योंकि चमर, शक्र के वैभव से ईर्ष्या करता था। इस घटना से क्रुद्ध होकर शक्र ने चमर को मारने के लिए अपना शस्त्र-वज फेंका। वज्र से भयभीत होकर चमर वापस अधोलोक की ओर भागा। इसी बीच शक्र ने सोचा कि चमर के ऊर्ध्व लोक में आने की परम्परा नहीं है और न ही उसका सामर्थ्य है। अवश्य ही वह किसी योगीतपस्वी की शरण लेकर आया है। मेरे वज्र से किसी तपस्वी का अनिष्ट न हो जाए, यह सोचकर शक्र, वज को पकड़ने के लिए भागा। स्थिति यह बनी . कि सबसे आगे चमर, उसके पीछे वज और उसके पीछे शक्र भागने लगे। ऊर्ध्वलोक से, अधोलक जाने के लिए तिर्यक् लोक में से गुजरना पड़ता है। घटना के अनुसार चमर ने अपनी रक्षा हेतु तिर्यक् लोक में भगवान महावीर की शरण का उपयोग किया तथा उनके दोनों पांवों के अन्तराल में गिर गया। भगवान महावीर उन दिनों साधना-काल में थे। उन्होंने अनुभव किया कि वज उनके शरीर से केवल चार अंगुल ही दूर था कि समय रहते शक्र ने वज्र को पकड़ लिया। शक्र ने भगवान महावीर को वंदना की, मन में पश्चाताप किया लेकिन चमर को ललकारता हुआ वापस चला गया।
सुनने में यह घटना भगवान महावीर का महिमा-मंडन लग सकती है परंतु इसमें गति विज्ञान के बहुमूल्य सिद्धान्त छिपे हैं। यह घटना दर्शाती है कि सामान्यतः द्रव्य या प्राणी एक लोक से दूसरे लोक में स्वतः विचरण • नहीं कर सकते। इसके लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जैसे