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द्रव्य मीमांसा और दर्शन ]
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स्निग्ध की बहुलता से गुरु स्पर्श, शीत और स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से मृदु स्पर्श और उष्ण तथा रुक्ष की बहुलता से कठोर स्पर्श बनता है। लघु और गुरु के स्पर्श पुद्गल-पदार्थ में भार को उत्पन्न करते हैं। जैनों ने भार को पुद्गल का मौलिक गुण नहीं माना है, यह पुद्गल का द्वितीयक गुण माना गया है । आगम साहित्य का यह वर्णन चतुःस्पर्शी पुद्गल और अष्टस्पर्शी पुद्गलों के गुण और व्यवहार में अन्तर करता है ।
विज्ञान के क्षेत्र मे अब तक की मान्यता यह है कि पदार्थ का मौलिक गुणभार है। भौतिक शास्त्र की विकास यात्रा में कुछ ऐसे कणों का पता लगा है जो भारहीन है। जैसे फोटॉन, ग्रेविटॉन और ग्लूऑन । लेकिन पदार्थ की भारहीनता संबंधी ज्ञान अपनी प्रारम्भिक स्थिति में है। जब भारहीन कणों को मान्यता मिलेगी तब भौतिक शास्त्र की मान्यताओं में एक क्रान्ति आएगी और कई उलझे हुए प्रश्न सुलझ जाएंगे।
वैज्ञानिक हाइजनबर्ग ने स्थूल और सूक्ष्म के व्यवहार के भेद को महत्त्वपूर्ण कहा है। उनके अनुसार स्थूल पदार्थ के नियम, सूक्ष्म पदार्थ पर लागू नहीं होते क्योंकि सूक्ष्म पदार्थ के व्यवहार को मापने के लिए सूक्ष्म उपकरण होने चाहिए। उन्होने इसे एक उदाहरण से स्पष्ट किया है कि किसी थर्मामीटर से पानी के गिलास में पानी का तापक्रम मापा जा सकता है लेकिन पानी की एक बूंद का तापक्रम थर्मामीटर से नहीं मापा जा सकता है क्योंकि वह बूंद थर्मामीटर पर ही लग जाएगी। इसका निष्कर्ष यह रहा कि सूक्ष्म पदार्थ के माप के लिए सूक्ष्म उपकरण होने चाहिए ।
(iv) परमाणु का स्वरूप
परमाणु, पुद्गल का सूक्ष्मतम अंश है। जैन सिद्धान्त के अनुसार यह अछेद्य, अभेद्य, अगाह्य, अदाह्य और निर्विभागी है। आधुनिक विज्ञान के विद्यार्थी को परमाणु के उपलक्षणों में संदेह हो सकता है, कारण कि विज्ञान के सूक्ष्म यन्त्रों में परमाणु की अविभाज्यता सुरक्षित नहीं है। विज्ञान सम्मत परमाणु टूटता है। इसकी तुलना में आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन सूत्र अनुयोग द्वार में वर्णित परमाणु -द्विविधता का उल्लेख किया है।
1. सूक्ष्म परमाणु
2. व्यावहारिक परमाणु
वे लिखते हैं कि सूक्ष्म परमाणु का स्वरूप वही है, जिसका सैद्धान्तिक वर्णन हुआ है लेकिन व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय से बनता है। वस्तुवृत्या वह स्वयं परमाणु पिण्ड है, फिर भी साधारण दृष्टि