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[ जैन विद्या और विज्ञान
है) तथा तापक्रम को अनन्त स्वीकार किया गया है। बिग-बैंग के प्रारम्भ के कुछ ही क्षणों में तापक्रम लुढ़क कर 1010 डिग्री मात्र रह जाता है और अगले कुछ समय में ही यह ब्रह्माण्ड पदार्थमय बनकर स्थिर हो जाता है। आइंस्टीन के अनुसार इस बह्माण्ड का प्रारम्भ और अन्त दोनों ही अपवाद परिस्थितियां है जिनका कोई भौतिक नियम नहीं हो सकता। उन्होनें इसे आकाश-काल . की विलक्षणता (Singularity) बताया है।
विज्ञान की एक विचारधारा के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हॉट बिगबैंग मॉडल (Hot Big-Bang Model) के द्वारा समझाई गई है जो कुछ ही सैकण्डों (क्षणों) मे सम्पन्न हो जाती है।
केवली समुद्घात की प्रक्रिया और ब्रह्माण्ड निर्माण की स्थितियों में यह समानता दिखाई देती है कि यहां कोई भौतिक नियम लागू नहीं होता है अतः दोनों को अपवाद मानना उचित प्रतीत होता है। केवली समुद्घात में, काल के सूक्ष्मतम अंश में एक आत्मा समूचे लोक में व्याप्त हो जाती है। बिग-बैंग सिद्धान्त भी यही प्रतिपादित करता है कि कुछ सैकण्डों में शून्य आयतन से ब्रह्माण्ड के अनन्त आयतन का विस्तार हो जाता है। भौतिक शास्त्र का यह नियम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि बिग-बैंग के समय आकाश और काल दोनों शून्य हैं तो पदार्थ अनन्त है। हम जैन दर्शन में ऐसे प्रकरणों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेंगे कि वस्तु का कोई गुण जब अनन्त हुआ है तो निश्चित रूप से उसका दूसरा गुण शून्य हुआ है। शून्य और अनन्त का सम्बन्ध अत्यंत रहस्मय है और इसको जानने के बाद से हम अनन्त के सही अर्थ को समझ सकते हैं।
पुद्गल के इस विराट रूप को जानने के बाद हम पुद्गल के स्वरूप और उसके सूक्ष्मतम कण परमाणु पर चर्चा करेंगे। (ii) पुद्गल के प्रकार
पुद्गल के कई प्रकार होते हैं। छोटा-बड़ा, सूक्ष्म-स्थूल, हल्का-भारी, लम्बा-चौड़ा, बन्ध-भेद, प्रकाश-अन्धकार, ताप-छाया, आकार, आदि। इनको पौदगलिक मानना जैन तत्त्व ज्ञान की सक्ष्म दष्टि का परिचायक है। जैन दर्शन की विशेषता यह है कि इसने शब्द को भी पौद्गलिक माना है जबकि अन्य दर्शनों में शब्द को आकाश का गुण अथवा आकाश को शब्द तन्मात्रा से उत्पन्न माना गया है। आधुनिक विज्ञान ने ध्वनि (Sound) पर विस्तार से कार्य किया है और अब निश्चित हो गया है कि शब्द पदार्थमय है।