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संग्रहणीसूत्र. हिसिं के चारेदिशिए वेश्या होइ के वेदिका होय. जे कांगरा विना गढ होय तेहने वेदिका कहीये. एटले समस्त वाटलां विमानने कांगरा सहित कोट होय. श्रने चोखूणीयां विमाननी चारे दिशाए कांगरा विना सादो कोट ले तेहने वेदिका कहीए.॥६॥
जत्तो वह विमाणा ॥ तत्तो तंसंस्स वेश्या दो॥
पागारो बोधवो ॥ अवसेसेहिं तु पासेसु ॥ ए॥ अर्थ- जत्तोवदृविमाणा के जे दिशिए वाटलां विमान होय, तत्तो के० ते दि. शाए तंसंस्स के त्रिखूणी विमानने वेश्याहो के वेदिका होय. श्रने अवसेसेहिं के बाकी सर्व पासेसु के बाजुनेविषे पागारो बोधवो के० प्राकार ते गढ जाएवो. त्रिखूणीयां विमाननी जे दिशाए वाटलां विमान डे, ते दिशाए कांगरा विनानो कोट बे, अने बीजी बेज दिशाए कांगरा सहित कोट बे. ॥ ए॥
आवलिय विमाणाणं ॥ अंतरं नियमसो असंखिजी
संखिजमसंखिज॥ नणियं पुप्फावकिनाणं ॥ ए॥ अर्थ- श्रावलियविमाणाणं के श्रावलिकागत जे बासठे विमान , तेने विषे माहोमांहे अंतरं के अंतर नियमसो के निश्चयथकी असं खिजं के असंख्याता योजननु बे. अने संखिजामसं खिऊं के संख्याता योजन तथा असंख्याता योजन पण पुप्फाव किन्नाणं के पुष्पाव किर्ण विमान तेने अंतरो नणियं के कडं बे. एटले एक पूर्वदिशि टालीने त्रण दिशिनां पुष्पाव किर्ण विमान डे, तेहने परस्पर अंतर केटलाएकने तो संख्याता योजननु बे, अने केटलाएकने असंख्याता योजन- बे.
अचंत सुरदि गंधा ॥ फासे नवणीय मय सुदफासा ॥
निचुजोयारम्मा ॥ सयंपदा ते विरायंति ॥ एए॥ अर्थ- हवे ते विमान अञ्चंत के अत्यंत सुरहिगंधा के सुरजिगंधमय बे, तथा फासे के० स्पर्श करी नवणीय के० माखणनी परे मज्य के मृड बे, एटले सुकुमाल बे. अने सुहफासा के सुखकारी ने स्पर्श जेहनो, वली निचलोया के० नित्यप्रते उद्योतवंत , रम्मा के मनोहर , सयपहा के० ते पोतानी प्रजा जे कांति तेणे करीने विरायंति के विराजमान .॥ एए॥
जे दकिणेण इंदा ॥ दाहिण आवली मुणेयवा ॥ जे पुण
उत्तर इंदा॥ उत्तर आवली मुणे तेसिं ॥ १० ॥ अर्थ- जेदरिकणेण इंदा के जे दक्षिण दिशिए सौधर्मे तथा सनत्कुमारेछ ,
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