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________________ संग्रहणीसूत्र. चनदिसि चनपंती ॥ बासह विमाणिया पढम पयरे ॥ न वरि शकिक हीणा ॥ अणुत्तरे जाव इकिकं ॥ ए० ॥ अर्थ-ते एकेका इंधक विमानथकी चारदिशाए बासठ बासठ विमाननी चार श्रेणी बे. अहींयां लावार्थ ए ले जे पहेलु नमुनामे इंधक विमान वाटर्बु जे. तेहनी चारदिशाए चार पंक्ति बासठ बासठ विमाननीनीकली. वलीबीजाप्रतरना बीजा इंडक विमानथीचारेदिशाए चारपंक्ति एकसठ एकसठ विमाननी नीकली. पनी ते उपरे प्रतरे प्रतरे चारे दिशिनी पंक्तिए पंक्तिए एकेकुं विमान हीणा के घटामतां, एम याव के यावत् सर्वार्थसिद्धे बासठमे प्रतरे एकेका विमाननी चार पंक्ति जाणवी. एटले त्यां चार दिशाए चार पंक्ति , अने एकेकी पंक्तिए एकेकुं विमान बे. ॥ ए० ॥ इंदय वहा पंतिसु॥ तो कमसो तंस चनरंसा वट्टा॥ विविदा पुप्फवकिन्ना ॥तयंतरे मुत्तुं पुवदिसिं ॥१॥ अर्थ-पंतिसु के० ते पंक्तिने विषे इंदय के इंजक विमान ले ते वहा के वाटलं.ने सर्वनी वचमां बे. तो के तेवार परी कमसो के अनुक्रमे श्रेणीविषे पहेला तंस के त्रिखूणां विमान बे, ते पड़ी चउरंसा के चोखूणां , ते पनी वली वट्टा के वाटलां बे. ए त्रण रीते पंक्तिगत विमान बे, अने नंदावर्त स्वस्तिकादिक विविहा पुप्फविकन्ना के विविध प्रकारना संस्थाने करी सहित पुष्पावकर्ण विमान दे, तयंतरि के ते पूर्वोक्त चार पंक्तिठना अंतरनी वच्चे ए पुष्पावकिर्ण विमान बे, ते मुत्त पुवदिसि के एक पूर्व दिशि मूकीने बाकीनी त्रण दिशिने विषे पुष्पावकिर्ण विमान बे. जेम रायणनां फूल बुटां विखेस्यां थका जेमतेम बुटां विखरे, ते रीते पुष्पाव किर्ण विमान लुटां . ॥ ए१ ॥ ॥ हवे पहेला प्रतरनी एकेकी पंक्तिनां बासठ बासठ विमान चारे दिशाए ॥ ॥ कीया कीया स्थानके बे ? ते कहे .॥ एगं देवे दीवे ॥ ज्वेय नागोदहीसु बोधये ॥ चत्तारि जकदीवे ॥ नूय समुद्देसु अहेव ॥ ए२॥ सोखस सयंजुरमणे ॥ दीवेसु पहिया य सुरजवणा ॥गतीसंच विमाणा ॥ सयंजुरमणे समुद्देय ॥ ए३ ॥ अर्थ- एगं के पहेला प्रतरतुं पहेलुं पंक्तिविमान ते देवेदीवे के देवछीपे , ते एकेकुं चारदिशाए, अने ज्वेयनागोदहीसु के बे विमान नागसमुप्रने विष बोधवे के जाणवा. तथा चत्तारिजरकदीवे के चार विमान जदछीपने विषे . वली नृय समुद्देसुअठेव के नूतसमुजनेविषे श्राप विमान . ॥ ए॥ अने सोल विमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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