SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 860
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ मणुय गइ जाइ तस बा, यरं च पळत्त सुनग आश्छ। जस कित्ती तिबयरं, नामस्स हवंति नव एया ॥१॥ अर्थ-नाणंतरायदसगं के पांच ज्ञानावरणीय अने पांच अंतराय, एवं दश प्रकृति तथा दसणनव के दर्शनावरणीय नव, वेयणिज के वेदनीयनी बे प्रकृत्ति, मिहत्तं के मिथ्यात्वमोहनीय, संमत्त के० सम्यक्त्वमोहनीय, लोन के संज्वलनलोन, वेशाज्याणि केत्रण वेद अने चार थायु, नवनाम के नामकर्मनी नव प्रकृत्ति जे चौदमे गुणगणे रहे जे ते तथा उच्चंच के० उच्चैर्गोत्र, एवं एकतालीश प्रकृति जाणवी. ॥ इत्यदरार्थः ॥ ७० ॥ तिहां ज्ञानावरणीय पांच, अंतराय पांच, तथा चार दर्शनावरणीय, एवं चौद प्रकृतिनो उदय अने उदीरणा, बारमा गुणगणानी एक श्रावली थाकती होय, तिहां सुधी सर्व जीवने साथेंज प्रवर्ते श्रने उदय, उदीरणा विछेद थया पली केवल जदयावलिका थाकती होय, तेमध्ये सर्व कर्मदल पेसे पण बाहीर बीजुं को कर्मदल रहे नहीं तो पड़ी शानी उदीरणा करे ? माटें ए चौद प्रकृतिनी बारमा गुणगणानी बेहली श्रावलिकायें उदीरणा न होय. तथा पांच निजानीज उदीरणा, शरीरपर्याप्ति पूरी थया पड़ी ज्यां लगे इंजियपर्याप्ति पूरी न करे, तिहां लगें उदीरणा न होय, केवल उदयज होय श्रने शेष कालें तो उदय, उदीरणा साथेंज प्रवर्ते, तथा साथेंज निवर्ते. तथा वेदनीयनी बे प्रकृतिनां उदय तथा उदीरणा बहा गुणगणा सुधी साथेंज प्रवर्ते अने ते उपरांत तो उदयज होय, पण उदीरणा न होय. तथा प्रथम सम्यक्त्व उपार्जतां अंतर करण कस्या पली मिथ्यात्वनी प्रथम स्थितिनी एक श्रावलि रहे त्यांसुधी मिथ्यात्व मोहनीयना उदय तथा उदीरणा सार्थेज प्रवर्ते अने बेहली श्रावलियें मिथ्यात्वनो उदय होय पण उदीरणा न होय. ___ तथा वेदकसम्यक्दृष्टिने दायिक सम्यक्त्व उपजावतां मिथ्यात्वमोहनीय अने मिश्रमोहनीय, ए बेहु खपाव्या पड़ी सम्यक्त्वमोहनीय सर्व अपवर्तनायें अपवर्तिने अंतरमुहर्त स्थितिमात्रनुं करे, तेने उदय तथा उदीरणायें नोगवतां जेवारें शेष एक आवलीमात्र रहे तेवारें उदीरणा टले केवल उदयावली खगें उदयज होय. अथवा उपशमश्रेणी पडिवजतां सम्यक्त्वमोहनीयनुं अंतर करण कस्या पली प्रथम स्थिति आवलिका मात्र रहे, तिहां लगें सम्यक्त्व मोहनीयनां उदय तथा उदी. रणा सार्थेज होय, अने पली बेहली श्रावलिये उदीरणा न होय, मात्र उदयज होय. संज्वलना लोचनां उदय तथा उदीरणा ज्यां लगे सूक्ष्मसंपरायनी एक श्रावलिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy