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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ नए अर्थ- एकवीशने उदय बत्तीस के बत्रीश नांगा, तिहां श्राउ मनुष्यना, विकलेंजियना, श्राप देवताना, आठ तिर्यंचना, बे एकेंजियना. चोवीशने उदयें सुन्नि के० बे नागा तियंचना जाणवा. तथा पञ्चीशने उदयें अध्य के आठ नांगा देवताना होय, बबीशने उदयें बासीइसयायपंच के पांचसे ने व्याशी नांगा होय. तिहां ()मनुष्यना, (२) तिर्यंचना, ब विकलेंजियना; उंगणत्रीशनें उदयें नवउदया के नव उदय नांगा होय, तेमध्ये श्राप देवताना, एक नारकीनो जाणवो. त्रीशने उदयें बारहिभातेवीसं के त्रेवीशसें ने बार नांगा, तेमध्ये ( ११५५ ) मनुष्यना, (१९५५) तिर्यचना, आठ देवताना जाणवा. एकत्रीशने उदयें बावन्निकारससयाय के अगीवारसें ने बावन नांगा तिर्यंचना होय. सर्व मली साते उदयस्थानकें थश्ने (४०) उदयनांगा थाय. एनी नावना पूर्ववत्. अने मिश्रादिक गुणगणे उदयनांगा पोतानी मेलेंज विचारीने कहेवा ॥३॥
॥अथ गतिचतुष्कक्रमेण बंधोदयसत्तास्थानान्याह॥ ॥हवे गत्यादिक बाश मार्गणाधारें नामकर्मनां बंधोदय सत्ता स्थानक कहे . तिहां प्रथम नरकादिक चार गति मार्गणाने विषे अनुक्रमें बंधोदय सत्तास्थानक कहे जे ॥
दो बक । चनकं, पण नव इकार उकगं उदया ॥
नेर आइ सु सत्ता, ति पंच इक्कारस चनकं ॥ ६ ॥ अर्थ-नरकादि चार गति अनुक्रमें लेवी. तिहां नरकगतिने विषे गणत्रीश ने त्रीश, ए दो के बे बंधस्थानक, तिहां उंगणत्रीशर्नु मनुष्यगति प्रायोग्य तथा तिर्यच प्रायोग्य होय, अने त्रीशनुं तिथंच प्रायोग्यज होय. एना नांगा पूर्वे कह्या , तेम खेवा. तथा तिर्यंचने २३-२५-२६-२७-२ए-३०-ए बक के बंधस्थानक होय. तथा मनुष्यने २३-२५-२६-२७-ए-३०-३१-१, ए अह के० थाठ बंधस्थानक होय, तथा देवताने २५-२६-ए-३०, ए चनकं के चार बंधस्थानक होय. ए चार गतिने विषे बंधस्थानक कह्यां. हवे चार गतिने विषे अनुक्रमें उदय स्थानक कहे . नारकीने
१-२५-२७--ए- ए पण के पांच उदयस्थानक होय. तिर्यंचने २१-२४-२५२६-२७-२-ए-३०-३१,ए नव के नव उदयस्थानक होय. मनुष्यने २०-२१-२५२६-२७-२-ए-३०-३१-ए-, ए श्कार के अगीबार उदयस्थानक होय. देवताने २१-२५-२७--ए-३०,ए बक्कगंजदया के उदयस्थानक होय. हवे नेरश्याश्सुसत्ता के नरकादिकगतिने विषे अनुक्रमें सत्तास्थानक कहे . नारकीने बाणु, नेव्याशी, अने अठ्याशी, ए ति के त्रण सत्तास्थानक होय. तिर्यंचने बाणु, अव्याशी, ज्याशी, एंशीअने अठोत्तेर, ए पंच के पांच सत्तास्थानक होय. मनुष्यने एक अहोत्तेर
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