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________________ ចុច៖ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ रतियें तेरनो बंध तथा प्रमत्त, अप्रमत्त अने श्रपूर्वकरण, ए त्रण गुणगणे नव नव प्रकृतिनुं एकेकुं बंधस्थानक होय, तिहां नांगा मिथ्यात्वे उ, सास्वादने चार, मिश्रे बे, अविर तियें बे, देशविरतियें बे, प्रमत्तें बे अने अप्रमत्तें तथा अपूर्वकरणे अरति शोक, ए युगलना अनावें एकविध बंधने सीधे एकेको नांगो होय. तथा पंचानिया, हिगणा के अनिवृत्ति बादरें पांच, चार, त्रण, बे अने एक, ए पांच बंधस्थानक, पांच जांगे होय. तिहां नांगो एकेको होय, बंधोवरमोपरंतत्तो के० तेवार पड़ी सूक्ष्मसंपरायादिक गुणगाणे मोहनीय कर्मनो बंध नथी, माटें बंधने अनावें मात्र उदयस्थानकज होय, ते कहे . ॥ इति समुच्चयार्थः ॥४॥ ॥अथ उदयस्थानान्याह ॥ हवे चौद गुणगणे मोहनीयकर्मनां उदयस्थानक कहे .॥ सत्ताइ दस मिने, सासायण मीसए नवुक्कोसो॥ गई नवन अविरई, देसे पंचाइ अव ॥४॥ थर्थ-मिन्छे के० मिथ्यादृष्टिने सत्ताश्दस के सातथी दश पर्यंत 5-5-५–१०, ए चार उदयस्थानक होय. तिहां नांगानी चोवीशी पूर्वे कही, ते रीतें अहीं पण श्राप चोवीशी जाणवी. तथा सासायणमीसएनवुक्कोसो के सास्वादन अने मिश्र, ए बे गुणगणे सातथी मामीने नव पर्यंत सात, आठ अने नव, ए त्रण उदयस्थानक होय. तिहां सास्वादने चार चोवीशी अने मिधे पण चार चोवीशी नांगानी उपजे तथा बाईनवनयविरई के अविरति गुणगणे बथी मामीने नव पर्यंत एटले ब, सात, श्राप अने नव, ए चार उदयस्थानक होय. तिहां नांगानी चोवीशी श्राप उपजे, तथा देसेपंचाश्यठेव के देशविरति गुणगणे पांचथी मामीने श्राप पर्यंत एटले पांच, ब, सात अने श्राउ, ए चार उदयस्थानक होय. तिहां पण जांगानी थाठ चोवीशी उपजे ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ४ ॥ विरए खवसमिए, चनराई सत्त बच पुर्वमि॥ अनियहि बायरे पुण, इक्कोव उवेव जदयंसा ॥५०॥ अर्थ-विरएखवस मिए के० श्रेणीथी देठे वर्त्ततो तेने दायोपशमिक विरती कहीये. ते दायोपशमिक विरति प्रमत्त तथा अप्रमत्त गुणगणावालो जाणवो. तिहां प्रमत्त अने अप्रमतें प्रत्येक प्रत्येक, चनराईसत्त के० चारश्री मांडीने सात पर्यंत चार, पांच, न अने सात, ए चार उदयस्थानक होय, तिहां जांगानी आठ चोवीश प्रमत्ते अने आठ चोवीशी अप्रमत्ते उपजे. तथा बच्चपुवंमि के अपूर्वकरणगुणगणे चारथी मांमीने पर्यंत एटले चार, पांच अने ब, ए त्रण उदयस्थानक होय. तिहां चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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