SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 784
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ - तथा देशविरति मनुष्यने पांचने उदय एकवीश, चोवीश अने अहावीश, ए त्रण सत्तास्थानक होय, तथा बने अने सातने उदयें पांच सत्तास्थानक होय, अने श्राउने उदयें एकवीशनां सत्तास्थानक विना बाकीनां चार सत्तास्थानक होय, जे जणी थाउनो उदय, सम्यक्त्वमोहनीय साथें होय तेमाटें तिहां एकवीश प्रकृतिनुं सत्तास्थानक न होय, बाकीनां चार होय ते वेदकसम्यक्त्वी मनुष्यने देशविरति गुणगाणे होय. एमज नवने बंधे प्रमत्त तथा अप्रमत्त गुणगणे चारने उदयें अहावीश, चोवीश अने एकवीश, ए त्रण सत्तास्थानक होय, तथा पांचने उदयें अने बने उदयें तो जे देशविरतियें कह्यां तेहिज पांच सत्तास्थानक होय, अने सातने उदयें एक एकवीशना सत्तास्थानक विना बाकीनां चार सत्तास्थानक होय. वहीं पण पूर्वोक्त युक्ति करवी ॥ इति समुच्चयार्थः ॥२३॥ पंचविद चनविहेसु, न बक्क सेसेसु जाण पंचेव ॥ पत्तेअं पत्तेअं, चत्तारि अ बंधु वुडेए॥२४॥ अर्थ-तथा पंचविहचविहेसुबबक के पंचविध बंधकने विषे तथा चतुर्विध बंधकने विषे प्रत्येकें ब ब सत्तास्थानक होय, तिहां पांचने बंधे अहावीश, चोवीश, एकवीश, तेर, बार श्रने अगीधार, ए र सत्तानां स्थानक होय, तेमांदेलां अहावीश अने चोवीश, ए बे सत्तास्थानक तो उपशमश्रेणीयें औपशमिक सम्यकदृष्टिने होय. तिहां जेणे नवमा गुणगणाने प्रथम नागे चार अनंतानुबंधीआ विसंयोज्या तेने चोवीशनुं सत्तास्थानक होय, अने एकवीशनुं सत्तास्थानक तो दायिकसम्यदृष्टिने उपशमश्रेणीयें तथा दपकश्रेणीये पण ज्यां लगें अप्रत्याख्यानीथा तथा प्रत्याख्यानीश्रा ए थाठ कषायनो दय न थयो होय, तिहां खगें एकवीशनुं सत्तास्थानक होय, श्रने पाठ कषाय खपाव्या पली तेहिज बंधे तेरनुं सत्तास्थानक होय. तेमांहेथी पण नपुंसकवेद खपावे थके बारनुं सत्तास्थानक होय, तेमांदेथी पण स्त्रीवेद खपावे थके अगीवारनुं सत्तास्थानक होय. पुरुषवेद बांधतां हास्यादिक उ प्रकृतिनो क्षय न थाय तेमाटें तिहां पंचादिक प्रकृतिनुं सत्तास्थानक न होय. तथा चारने बंधे बहावीश, चोवीश भने एकवीश, ए त्रण सत्तास्थानक तो उपशम श्रेणीयें पूर्वली पेरें जाणवां. बाकीनां त्रण सत्तास्थानक रूपकश्रेणीयें होय, तेनुं विशेष कहे .तेमध्ये कोइएक जीवें नपुंसक वेदोदये वर्तता क्षपकश्रेणी मांडी ते स्त्रीने नपुंसक एबे वेद, साथै समकालें खपावे, ते वेलायेंज पुरुषवेदनो बंध विछेदे, तेवार पत्री पुरुषवेद अने हास्यादिक उ, ए साते प्रकृति साथै खपावे. तथा जे स्त्रीवेदें श्रेणी मांडे, ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy