________________
५०
संग्रहणीसूत्र. सरे विय ॥ हवसुवने विसालेय ॥४१॥ दासे दास रईविय ॥ सेएय नवे तदा महासेए ॥ पयगे पयगवईविय ॥ सोलस इंदाण नामा॥४॥ अर्थ-एक संनिहित,बीजो सामानरंज,त्रीजोधाता, चोथो विधाता,पांचमो ऋषी,बहोशषीपालेंज, सातमो ईश्वरज, श्रापमो महेश्वरइंज,हवर के होय. नवमो सुवबइंज, दशमो विसाल ॥४१॥ अगीयारमो हास्यरंज, बारमो हास्यरतिइंज, तेरमों खेत, नवे के होय. तहा के० तेमज चउदमो महास्वेत, पन्नरमो पतंगड, सोलमो पतंगपति इंफ, विय के निश्चे. सोलसदा के सोलनां नामाइं के नामो जाणवां ॥४२॥ ए सोल इंड वाणव्यंतरना कह्या. तेम पूर्वे सोल इंज व्यंतरना कह्या , सर्व मली बत्रीश इंजव्यंतरना थया. तथा नवनपतिना वीश इंफ, वली यद्यपि चंप्रमा, तथा सूर्य तो असंख्याता इं . तथापि जातिनी अपेदाए चंद्र सूर्य बेज गणीए, माटे ज्योतिषीना बे इंस, अने वैमानिकना दश इंछ मली चोसठ इंड गणतीमां ने.
॥हवे व्यंतर तथा ज्योतिषि ए बेउनी सरखी वक्तव्यता नणी एना॥ ॥ सामानिक देवो अने यात्मरक्षक देवो, ए बेनी संख्या कहे .॥
सामाणियाण चनरो॥ सहस्स सोलसय आयरका
णं ॥ पत्तेयं सबेसि ॥वंतरवससि रवीणंच ॥४३॥ अर्थ- सामाणियाण के सामानिक देवो ते चउरोसहस्स के चार हजार अने सोखसय के सोल हजार आयरकाणं के श्रात्मरक्षक देवो, ते सव्वेसि के सर्वनिकायनेविषे पत्तेयं के प्रत्येके वंतरवर के व्यंतरना पति जे बत्रीश इंज, तेने तथा ससी रवीणंच के चंद्र अने सूर्य ए बे ज्योतिषीना ऊनी पण वक्तव्यता व्यंतरसरखीज बे; माटे ए सर्वने होय. एटले व्यंतरना नगरोनी वक्तव्यता कही. ॥ ४३ ॥
॥ हवे बधा देवो केटला प्रकारना ? ते कहे .॥ इंद सम तायतीसा॥ परिसतिया रक लोगपालाय ॥ अणिय
पश्न्ना अनिऊंगा ॥ किब्बिसं दस नवण माणी ॥४४॥ अर्थ- एक इंदसम के इंज, श्रने सामानिक देवो, अने तायतीसा के त्रायत्रिंशकदेवो, तथा परिसतिया के त्रण पर्खदाना देवो, आयरक के अंगरक्षक देवो, लोगपालाय के चार लोकपाल, अणिय के अनीय ते कटकना देवो, पन्ना के प्रकीर्ण, प्रजाना देवो, अनिलंग के अनियोगीक ते किंकरदेवो, कि ब्बिसं के० किलविषीक देवो, दश के ए दश जातिना देवो ते जुवण के जुवनपति, व्यंतर तथा वेमाणी के० वैमानिकमां ॥ ४४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org