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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ मायानी पण चरम कीटी, संज्वलना लोननी प्रथम कीटीमांहे संक्रमावी खपावे, संज्वलन कीटीन दल प्रथम स्थितिगत करी वेदें, ते वेदतो श्रागली कीटीन दल तेनी सूक्ष्क्षसूक्ष्म कीटी करे, ते पण त्यांलगें करे के, ज्यांलगें संज्वलन लोजनी बीजी कीटी समयाधिक श्रावली मात्र रहे, तिहां संज्वलन लोननो बंध व्यवछेद थाय%; तथा बादर कषायनो उदय अने उदीरणा पण व्यवछेद थाय, अनिवृत्तिगुणस्थानकनो काल पण व्यवछेद थाय. ए त्रण साथें व्यवछेद थाय. ते पड़ी सूमसंपराय कीटीदल प्रथम स्थितिगत करी वेदे, तेथी तेने सूक्ष्मसंपराय गुणगणुं कहीये. तेना संख्याता नाग जाय, तिहां लगें मोहनीयमांहे स्थितिघातादिक पांच पदार्थ प्रवर्ते. जेवारें एक नाग शेष रहे, तेवारें स्थितिघातादिक पांच पदार्थ विरमे. शेष ज्ञानावरणादिक कर्मना स्थितिघातादिक रहे, तिहां अपवर्तना करणे करी सूक्ष्मसंपराय असा जेटलो लोन करे, ते संज्वलनो लोन श्रावली मात्र रहे, तेवारें उदीरणा टले, बेहेली श्रावलीयें उदय करी वेदी खपावे. एम सूदमसंपरायना चरम समये सर्व मोहनीयने दीण करी क्षीणमोही थयो. तिहां जेम कोइएक तारु पुरुष, महोटो समुल तरतो थको वचमां छीप पामी विश्राम लेश वली श्रागल तरवा मांडे, तथा कोश्एक योद्धो पुरुष, महासंग्राम करतो शत्रुने हणतो हणतो थाके, तेवारें वली विश्राम ले समूलगो शेष शत्रु जीतवाने सज थाय. तेम ए जीव पण सबल पुर्जय शत्रु जे महामोह तेने कीपतो संग्राम करतो करतो थाको, तेमाटें ते यथाख्यात चारित्ररूप विश्रामस्थानक पामी वली शुक्लध्यानना बीजा पादें प्रवछमान वीर्यवंत थयो थको अंतरमुहूर्त्तना हेला बे समयमध्ये प्रथम समयें निदा के निडा अने प्रचला, ए बे प्रकृति खपावे, अने बेहेले समयें विग्यावरणखए के पांच अंतराय, पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, ए चौद प्रकृति खपावी, निश्चय नयें बारमा गुणगणाने बेहेले समय नाणी के केवलझानी थाय, अने व्यवहार नयने मतें तेरमा गुणगणाने प्रथम समयें केवलज्ञानी थाय. एम त्रेश प्रकृतिनो क्षपणाविधि कह्यो. ए दपकश्रेणीने संदेपें कही एनो विस्तार बहा कर्मग्रंथना बालावबोधमां लख्यो , तेमाटें अहींयां थोडा बोलें घणुं जाणवू. ___ए लघुशतक एवे नामें पांचमो कर्मग्रंथ जे जणी महोटो शतक श्रीशिवशर्मसूरिकृत जोश्ने तथा पंचसंग्रह, कर्मप्रकृति प्रमुख शास्त्र तथा चूर्णिका प्रमुख घणा ग्रंथ जोश्ने परमगुरु गठाधिराज तपाबिरुद प्रवर्तक, महावैरागिकशिरोमणि, नहारक श्रीजगञ्चं सूरीश्वर चरणकमलयोरालंबायमान सर्वागमिकचक्रवर्ति बिरुदधारक अनेक विद्यानंद धर्मकीर्ति प्रमुख बहुश्रुत परिवार परिवृता श्राझदिनरुत्य सूत्रवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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