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________________ ६एए शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ गुणो, तेथकी औदारिक पुजलपरावर्तकाल अनंतगुणो, तेथकी श्वासोश्वास पुजल. परावर्त्त काल अनंतगुणो, तेथकी मनःपुजलपरावर्त काल अनंतगुणो, तेथकी जाषा पुजलपरावर्त्तकाल अनंतगुणो, तेथकी वैक्रियपुशलपरावर्त्त काल अनंतगुणो जाणवो. कार्मण पुजलपरावर्त सर्व नवें ग्रहण करे, तेथी तरत पूराय, श्रने ते कार्मणदलथकी तैजस अनंतगुणो हीन पुजल बे, ते नणी अनंतगुण कालें पूराय, एम पोतानी मतियें विचारीने कहे. अतीतकालें एक जीवने अनंता वैक्रिय पुजलपरावर्त थयां, तेथकी अनंतगुणां नाषा पुजलपरावर्त्त थयां, तेथकी अनंतगुणा मनःपुजलपरावर्त थयां, ते थकी अनंतगुणां श्वासोश्वास पुजलपरावर्त थयां, तेथकी अनंतगुणां औदारिक पुजलपरावर्त्त थयां, तेथकी अनंतगुणां तैजसपुजलपरावर्त्त थयां, तेथकी अनंतगुणां कार्मण पुजलपरावर्त थयां. एम अतीतकालें अतिक्रम्या. अहीं कोइएक श्राचार्य एम कहे, के औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने कार्मण, ए चार शरीरपणे सर्वलोकवर्सि परमाणु जे ग्रहे, ते तेना लेखामांहे गणाय. एम करी सर्व परमाणु चार शरीरपणे परिणमाव। ग्रहीने मूके, ते बादर जव्य पुजलपरावते अने अनुक्रमें एक शरीरपणे परिणमावे ते लेखामांहे गणाय. एवी रीते सर्वाणु एक शरीरपणे जेवारें परिणमावी रहे, तेवारें पड़ी वली बीजा शरीरपणे परिणमावे, पण औदारिक परावर्त्तमध्ये वैकियादिक पुजल लीये, ते लेखामांहे गणाय नहीं, एम अनुक्रमें चारे प्रकारे सर्वाणु परिणमावतां सूक्ष्मपुजल परावर्त थाय. इत्यर्थः ॥॥ ॥ हवे बादर तथा सूक्ष्म क्षेत्रादिक त्रण पुजल परावर्त्तनुं स्वरूप कहे . ॥ ... लोग पएसो सप्पिणि, समया अणु नाग बंध हाणाय॥ ... जद तह कम मरणेणं, पुछा खित्ताइ थूलियरा ॥ ॥ अर्थ- लोगपएसो के० चौद राजलोकना आकाश प्रदेश सप्पिणिसमया के जत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीना समय श्रने अणुजागबंधहाणाय के अनुनाग बंधनां स्थानक, ते रसबंधना हेतु असंख्यातां अध्यवसाय स्थानक जाणवां. ए त्रणे जहतह के जेम तेम बाघा पाबा मरणेणं के क्रमोत्क्रम मरणें करीने, पुहा के० फरसी रहे, तेवारें कम के अनुक्रमें खित्ताश्के क्षेत्रादिक एटले क्षेत्रथी, कालथीने जावधी थूल के० स्थल एटले वादर पुजल परावर्त्त थाय, अने श्यरा के ए थकी इतर एटले एत्रणे अनुक्रमेज मरण वेलायें फरसे, तेवारें एत्रणे सूक्ष्म पुल परावर्त्त थाय. ॥ इत्यक्षरार्थः ॥ ७ ॥ सर्व लोकना श्राकाशप्रदेश एटले जे अंगुलघन आकाशखंडना प्रदेशापहार स. मय समय प्रत्ये करतां पण असंख्यातां कालचक्र व्यतिक्रमी जाय, एवा सूक्ष्म ननः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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