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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ ६०० रिकादिक शरीरपणे ग्रहीने मुके, तेटले काले बादरअव्य पुजलपरावर्त एवी सामान्य संज्ञा होय. ए बाउ जातिना पुजल परावर्त कह्या ले. ते मध्ये पण चार जातिना बादर पुजल परावर्त जे कह्या बे ते सूक्ष्म पुजल परावर्तना सुखावबोधने अर्थ कह्या बे. जे मूढमति, सूक्ष्म पुजल परावर्तन स्वरूप न समजे, तेने बादरनुं स्वरूप समजावीयें, ते बादरना स्वरूपनी समजणमां मति नेदाय तो पनी सूक्ष्म पुजल परावर्त्तनुं खरूप पण सुखें समजी जाय, ते नणी बादर कह्या जे. बीजुं जिहाँ पुजल परावर्त काल शास्त्रे कह्यो तिहां तो सर्व सूक्ष्म पुजल परावर्त लेवा, केमके तेहिज शास्त्रमा उपयोगी . जे सम्यक्त्व पाम्या पठी किंचितन्यून अर्ड पुजल परावर्त मात्र संसारमध्ये रहे, एम कडं , ते पण सूदम क्षेत्र पुजल परावर्त्तनुं थर्ड जाणवू; ते चारे जातिना सूक्ष्म पुजल परावर्त्तमांहेलो एकेक केटले कालें होय, तेनुं मान कहे जे. उत्सर्पिणी कहेतां जिहां जरत ऐरवतना मनुष्यने चढतुं शरीरमान, आयु तथा सुख वधतुं जाय, तेने उत्सर्पिणी काल जाणवो. तिहां प्रथम पुःखमा पुःखमा आरो एकवीश हजार वर्षनो, बीजो कुःखमा थारो एकवीश हजार वर्षनो, त्रीजो दुःखमा सुखमा थारो एक कोमाकोमी सागरोपम बैंतालीश हजार वर्षे न्यूननो, चोथो सुखमा कुःखमा थारोबे कोमाकोडी सागरोपमनो,पांचमो सुखमाआरोत्रण कोमाकोडी सागरोपमनो, अने बहो सुखमा सुखमा थारो चार कोमाकोमी सागरोपमनो. एम जिहां चढतो चढतो काल ते उत्सर्पिणी काल कहीयें, अने जिहां प्रथम सुखमा सुखमा आरो होय, अने हो फुःखमा पुःखमा आरो होय, ते अवसर्पिणी पमतो काल जाणवो. तेहवी अनंती उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी एटले अनंता कालचक्र प्रमाण एकेक पुगल परावर्त ते अनंतानंत नेदें . तेथी एमध्ये पण कालजें अल्प बहत्व कडं बे, ते विरुफ नथी, जे नणी अव्य पुजल परावर्त्त कालस्तोक, तेथी अनंतगुणो देत्र पुगल परावर्त काल जाणवो, तेथी काल पुजल परावर्तनो काल अनंतगुणो जाणवो, ते थकी नाव पुजल परावर्तनो काल अनंतगुणो जाणवो, ए जीवने अतीतकालें जाव पुजल परावर्त अनंतां थयां, तेथी अनंतगुणां काल पुजल परावर्त्त थयां, 'तेथी अनंतगुणां देत्र पुमल परावर्त थयां, तेथी अनंतगुणां अव्य पुजल परावर्त थयां. ॥ ति समुच्चयार्थः ॥ ६॥ ॥ हवे प्रथम अव्यथी बादर तथा सूक्ष्म पुलपरावर्त्तनुं स्वरूप कहे. ॥ उरलाइ सत्त गेणं, एग जि मुअ फुसिय सब अणू ॥ जित्तिअ कालि स थूलो, दवे सुहुमो सगऽन्नयरा ॥ ७॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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