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________________ ६०६ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ս सत्य बे, किंतु सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपमें करी दृष्टिवादने विषे द्रव्य मवीयें ढैयें ते केटarएक यथोक्त वालाग्र स्पष्ट नजः प्रदेशें करी मवीयें बैयें, अने केटलाएक अस्पष्ट नजः प्रदेशें करी मवीयें ढैयें, माटें दृष्टिवादोक्त द्रव्यमानोपयोगीपणाथ की वा लाय प्ररूपणा प्रयोजनवाली बे. एम त्रण सूक्ष्म पल्योपम शास्त्रने विषे उपयोगी होय, छाने त्रण बादर पल्योपम कह्या, ते सूक्ष्मपब्योपमना सुखावबोध थवा माटें कया. अहीं प्रायें घणुंतो सूक्ष्म श्रद्धापस्योपमनुं प्रयोजन बे, ते श्रद्धापल्योपमें करी वीश कोडाकोमी सागरोपमनुं कालचक्र थाय, तेवा अनंतें कालच एक पुजलपरावर्त्त थाय, एवा छानंत पुलपरावर्त्त अतीत श्रद्धा यतिक्रम्या ते जणी एनेविषे पुल परावर्त्त एवी संज्ञा करीयें. जो पण पुल परावर्त्त एवी संज्ञा मुख्यपणे द्रव्यपरावर्त्तने विषे होय. केम के औौदारिका दिक पुलनी परावर्त्त एवी संज्ञा होय बे ते मुख्य कदेवाय, तथापि व्याकाशप्रदेश समय अध्यवसाय परावर्त्ते क्षेत्र, काल ने जाव परावर्त्तादिकने विषे पण जे पुल परावर्त्त एवी संज्ञा करवी ते गौणपणे जाणवी तथा आशांबरमतें नवपरावर्त्त पण मान्युं बे. पण ते हींयां न लीधुं ॥ ८५ ॥ • ॥ दवे पुलपरावर्त्तना आठ भेदनुं स्वरूप त्रण गाथायें करी कहे. ॥ दवे खित्ते काले, जावे चन्द डुद बायरो सुहुमो ॥ होइ प्रस्सप्पिणि, परिमाणो पुग्गल परहो ॥ ८६ ॥ अर्थ- दधे के० द्रव्य पुल परावर्त्त, खित्ते के० क्षेत्र पुल परावर्त्त, काले के० परावर्त्त, जावे के० जाव पुजल परावर्त्त, एम चउह के० चार नेदें पुल 'परावर्त्त बे, ते वली एकेको बायरो के० बादर ने सुमो के सूक्ष्मना दें करी उद के० बे बे प्रकारें होइ के० होय. तुस्सप्पिणि परिमाणो के० अनंती उत्सर्पिणीने अवसर्पिणी काल प्रमाण पुग्गल परहो के पुल परावर्त्तनुं कालमान जावं. ॥८६॥ एक बादर द्रव्यपुलपरावर्त्त, बीजो सूक्ष्म द्रव्य पुलपरावर्त्त, त्रीजो बादर क्षेत्र पुलपरावर्त्त, चोथो सूक्ष्म क्षेत्र पुलपरावर्त्त, पांचमो बादर काल पुलपरावर्त्त, सूक्ष्म काल पुल परावर्त्त, सातमो बादर जावपुलपरावर्त्त, आठमो सूक्ष्म जावलपरावर्त्त. हिंयां कोइएक नवपुलपरावर्त्त सूक्ष्म तथा बादर एम पण माने बे. ते मतें दश ज्ञेद कहे बे. पण स्वमतें तो घाव नेदज का बे. तिहां पूर्णगलन स्वाव तेने पुजल कहीयें. ते अणुने मलवे तथा विघटवे करी जे स्कंधनो नेद ते पुलस्कंध कहीयें, ते सर्व जीवथकी अनंतगुणा बे. सर्व लोकाकाशप्रदेश अनंतानंत पुलस्कंधें जरयो बे. ते जेटले कालें जीव सर्व अणुस्कंध श्रदा Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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