________________
១០
शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ अने स्पर्शनी संख्या कहे . तिहां औदारिकवर्गणा, वैक्रियवर्गणा, थाहारकवर्गणां, एत्रण वर्गणाना पुजलस्कंध पांच वर्ण, बे गंध, पांच रस बने थाप स्पर्श, ए वीश गुणवंत होय, तेथी ते गुरुलघु अव्य कहीयें, तथा तैजसदल पण सिझांतने मतें वीश गुणवंत होय तेथी ते पण गुरुलघु अव्य कहीये. अने नाषाजव्य, श्वासोवासजव्य, मनोजव्य अने कर्मवर्गणाजव्य, ए चार वर्गणाना दल शोल गुणवंत होय, तेथी एने अगुरुलघुपव्य कहीयें, ते शोल गुण, गाथाना अर्थे करी विवरीने कहीयें बैये." फासा गुरुलहुमिछ खरा सीजएहसिणि" ए गाथाने अनुसारें. - अंतिमचउफास के बहेला चार स्पर्श तेना नाम कहे . एक शीत, बीजो उष्ण, त्रीजो रूद अने चोथो स्निग्ध, ए चार स्पर्श अगुरुलघुजव्य होय. जे जणी एक परमाणुयें एक वर्ण, एक गंध, एक रस अने बे स्पर्श, एवं पांच गुण होय. केमके रूद अने स्निग्ध परमाणुयें परस्परें बंध होय, तेथी सर्व परमाणुयें ए बे मांहेलो एक स्पर्श, अवश्य होय; तथा शीत अने उष्ण, ए बे मांहेलो पण एक स्पर्श होय. एम बे स्पर्श, एक परमाणुयें अवश्य होय, अने अनंत प्रदेशी ए सूदम परिणत स्कंधे को परमाणु स्निग्ध शीत, कोश स्निग्ध उत, को रूद शीत अने कोश रूक्ष उप्स, एम चार जातिना परमाणुथा मली आवे, तेवारें जोषाव्य, श्वासोश्वासप्रव्य, म. नोजव्य अने कार्मणदल, ए चारे दलें ए चार स्पर्श लाने. ए स्वमतें कडं. तथा कम्मपयडीने मतें पण एज चार स्पर्श कह्या, अने बृहछतकने मतें तो ए चारे वर्गणास्कंधने विषे मृड तथा लघु स्पर्श अवश्य होय श्रने रूद तथा स्निग्ध मांहे. लो एक स्पर्श होय, तथा शीत अने उक्ष, ए बे मांहेलो पण एक स्पर्श होय, एवं चार स्पर्श होय अने ए सूक्ष्मतव्य नणी गुरु तथा कर्कश, ए बे स्पर्श न होय.
तथा पुगंध के० एक सुगंध बीजो पुगंध, ए बे गंध अने पंचवन्नरस के कृम, नील, रक्त, पीत, अने शुक्ल, ए पांच वर्ण तथा तीखो, कटुक, कषायल, थाम्ल अने मधुर, ए पांच रस, एवं शोल गुण सहित कम्मखंधदलं के० कार्मणस्कंधन दल पुजल होय. तेमज तैजस, नाषा, श्वासोश्वास अने मनोऽव्य, ए चार वर्गणाना स्कंध पण शोल गुणवाला होय, तथा औदारिक, वैक्रिय बने थाहारक, ए त्रण शरीरअव्य ए नोकर्म पुजलजव्य, पांच वर्ण, बे गंध, पांच रस श्रने श्राव स्पर्श, एम वीश गुणवंत पुजलव्य होय, तथा सिझांतने मतें तैजसअव्य पण वीश गुणवंत होय, तेथी एने गुरुलघुव्य कहीये. । - सबजियणंतगुणरसश्रणु के अहीं सर्व जीव जे अनंते , तेणे करी गुण्या जे रसाणु एटले केवलीनी बुफिरूप शस्त्रे करी कटप्या जे रसना निरंश अंश, ते नावाणु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org