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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
६०१ तेमध्ये पराघात अने उच्चास, ए बे प्रकृति वधारीये अने अपर्याप्ताने स्थान पर्याप्त नामकर्म कहीं तेवारें पच्चीश प्रकृति, पर्याप्त एकेंजिय प्रायोग्य मिथ्यात्वीदेव, मनुष्य तथा तिर्यंच बांधे. अहीं जांगा वीश ते सत्तरीना टबाथी जाणवा, ए बीजं स्थानक, ते पच्चीश प्रकृतिने आतप अथवा उद्योतसहित करीये तेवारें बबीश प्रकृ. तिनो बंध. ए पण पर्याप्ता एकेंघिय प्रायोग्य त्रणं गतिना मिथ्यात्वी जीव बांधे, यहीं नांगा शोल थाय. ए त्रीजुं बंध स्थानक.
तथा देवधिक, पंचेंजियजाति, वैक्रियशरीर, वैक्रियांगोपांग, समचतुरस्रसंस्थान, पराघात, उवास, शुजखगति, स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर अथवा अस्थिर, शुन अथवा अशुन, यश अथवा अयश, सुजग, सुस्वर, श्रादेय, वर्णचतुष्क, तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, निर्माण, उपघात, ए अहावीश प्रकृति, देवगति प्रायोग्य मिथ्यात्वी तथा सम्यकदृष्टि मनुष्य अने तिर्यंच बांधे. तिहां स्थिरास्थिरादिक साथें नांगा आठ थाय, तथा तेमज नरकगति प्रायोग्य पण अहावीश प्रकृति बंधाय; पण एटवं विशेष जे, देवहिकने स्थानकें नरकठिक तथा समचतुरस्त्रसंस्थानने स्थानकें डंडसंस्थान श्रने अपरावर्तमान प्रकृति अशुज लेवी. अहींयां अहावीशनो नांगो एकज खेवाय. ए अहावीश प्रकृतिनुं बंधस्थानक चोथु.
तथा सम्यक्दृष्टि जीव, जिननामसहित देवप्रायोग्य अहावीश बांधतां उंगणत्रीश प्रकृतिनो बंध. अहीं नांगो एक, जे जणी ए शुनज बंधाय तथा मनुष्यछिक, पंचेंजिय जाति, औदारिकछिक, ब संघयणमाहेबुं एक संघयण, ब संस्थान मांहेलु एक संस्थान, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर अथवा अस्थिर, शुज अथवा अ. शुज, सौलाग्य अथवा दो ग्य, सुखर अथवा पुःखर, आदेय अथवा अनादेय, यश अथवा अयश, शुजखगति अथवा अशुजखगति, पराघात, उश्वास, वर्णचतुष्क, तेजस, कार्मण, अगुरुलघु, निर्माण, उपघात, ए मनुष्य प्रायोग्य उंगणत्रीश प्रकृतिना बंध स्थानकना नांगा, तालीशसें ने श्राप थाय, तेमज पंचेंजिय तिर्यंच प्रायोग्य उगणत्रीश बंधप्रकृतिना पण नांगा एटलाज जाणवा.ए पांचमुंबंधस्थानक. तथा देवगति प्रायोग्य अहावीश प्रकृति ते थाहारकशरीर तथा आहारकअंगोपांगसहित बांधतां त्रीज्ञ प्रकृतिनो बंध, अप्रमत्त साधुने होय. अहींय नांगो एक थाय तथा मनुष्य प्रा. योग्य जंगणत्रीश बंध प्रकृतिने जिननाम सहित बांधतां सम्यक्दृष्टि देवताने त्रीशनो बंध. ए बहुं बंधस्थानक. तथा जिननाम सहित देवप्रायोग्य त्रीश प्रकृति बांधतां, एकत्रीश प्रकृति अप्रमत्त अपूर्वकरणगुणगणावाला साधु बांधे. अहीं पण नांगो एक थाय. ए सातमुं बंधस्थानक,
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