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________________ एएन शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ प्रचला, ए बे प्रकृतिनो बंध करे, ते तेनी साथें मेलवतां ब प्रकृतिनो बंध करवाना प्रथम समयें नूयस्कार बंध पहेलो जाणवो. तथा नवनो बंध करतां बीजो नूयस्कार बंध जाणवो तथा नवनोबंध करी फरी बनो बंध करतां प्रथम समयें प्रथम श्रदपतर बंध, तथा अपूर्वकरण गुणगणानाप्रथम नागें उ प्रकृतिनो बंध करी वली निखा अने पचलानोबंध विछेदी चारनो बंध करतां,प्रथम समये बीजो अल्पत्तर बंध जाणवो. एत्रणे बंध. स्थानकें बीजा समयथी मांडीने ते ते बंधस्थानकना चरम समय लगें त्रण अवस्थितबंध जाणवा, तथा श्रगीश्रारमे गुणगणे दर्शनावरणीयनो प्रबंधक होय अने तिहाथी पडतां दशमे गुणवाणे दर्शनावरणीयनी चार प्रकृति बांधतांप्रथम समयें प्रथम श्रवक्तव्यबंध. तथा जे जीव उपशांतमोह गुणगणे श्रायुःदये मरण पामीने अनुत्तरविमाने देव थाय, तिहां प्रकृति बांधे तेने प्रथम समयें बीजो अवक्तव्यबंध होय, एटले दर्शनावरणीयनां बंधस्थानकें, नूयस्कारबंध, अल्पतरबंध, अवस्थितबंध तथा श्रवक्तव्यबंध कह्या. ॥हवे मोहनीयनां दश बंधस्थानक , ते कहे.॥ मोहे के मोहनीयनी अहावीश प्रकृतिमध्ये सम्यक्त्वमोहनीय तथा मिश्रमोहनीय बांधे नहीं. बाकी बबीश प्रकृति बंध योग्य तेमां पण त्रण वेदमध्ये एक समय एकज वेद बांधे, तथा हास्य अने रति तथा शोक श्रने अरति, ए बे युगल मध्ये पण एकज युगल बंधाय. केमके ए प्रकृति बंधोदय विरोधिनी ले ते जणी मिथ्यात्वगुणगणे 5 के बावीश बंधस्थानक होय. एनी स्थिति अन्नव्यनी अपेक्षायें तो अनादि अनंत अने नव्यनी अपेक्षायें अनादि सांत तथा सादिसांत जाणवी. तेमध्ये पण सास्वादन गुणगणे मिथ्यात्वमोहनीय न बंधाय, तेवारें गवीस के एकवीश प्रकृतिनुं बंध स्थानक होय. अहीं उ तथा श्ग, ए बे शब्दने वीश शब्द जोडवो, एनी स्थिति जघन्य एक समय आने उत्कृष्टथी तो श्रावली प्रमाण जाणवी. तेमध्ये वली मिश्र अने अविरति, ए बे गुणगणे चार अनंतानुबंधीया न बंधाय, तेवारें सत्तरस के सत्तर प्रकृतिनुं बंधस्थानक होय. एनी स्थिति जघन्य तो अंतरमुहत अने उत्कृष्ट तो तेत्रीश सागरोपम काल पूर्वकोडी पृथक्त्व अधिक होय, जे नणी अनुत्तरवासी देव चवीने ज्यांसुधी विरतिपणुं न लहे, त्यांसुधी तेने ए बंधस्थानक होय. ते मध्येथी देश विरति गुणगणे अप्रत्याख्यानीआ कषाय चार, न बंधाय, तेथी तेरस के तेर प्रकृतिनुं बंधस्थानक होय. ए पण जघन्यथी तो अंतरमुहूर्त अने उत्कृष्ट थी तो देशोन पूर्वकोडी प्रमाण जाणवी. तेमध्ये वली प्रमत्त अने अप्रमत्तगुणठाणे प्रत्याख्यानावरण चार कषाय न बंधाय, माटे त्यां नव के० नव प्रकृतिनो बंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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