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षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ कमां जेटला पदार्थ बे, तेनो व्यवहार सर्व मध्यम आठमो अनंतानंतोज प्रवर्ते ले पण उत्कृष्टं अनंते को वस्तु नथी. अहीं मतांतरें उत्कृष्टानंतो कह्यो. श्यसुहमबविधारो के० ए सूमार्थ विचार एटले संतिने अगम्य जे जीवादिक पदार्थ तेनो विचार शब्दानिधेय श्रीपंचसंग्रहादिक जोश्ने अरविन्यास कस्यो. देविंदसूरीहिं के तपागाधिराज श्री देवेंअसूरिये लिहिउ के लख्यो. ए षडशीतिकानामें चोयो कर्मग्रंथ समाप्त थयो. ॥ जए॥
॥श्रत प्रशस्तिः ॥ श्रीमच्चाउकुलांनोधिविधुः सूरीश्वरोऽनवत्॥ श्रीमदानंद विमलो, वैराग्यामृतपूरितः ॥१॥ तविष्यमुख्यसंख्यान, संख्याव्याप्तगुणोत्कराः॥श्रीसोमनिर्मलनामानः बनूवर्मनिविश्रुताः॥२॥श्रीहर्षसोमतचिष्य, प्रज्ञाविज्ञाननार्गवाः॥श्रीयशस्सोमनामानस्तहिनेयाविशारदाः ॥३॥ तत्पदांनोज गेण, लेखो दृदेखनो नृशं ॥ मुग्धानामवबोधार्थ टवार्थः षडशीतिकाख्ये ॥४॥ इति प्रशस्तिः॥
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॥ इति षडशीतिनामा चतुर्थः कर्मग्रंथः
बालावबोधसहितः संपूर्णः॥ Remeseseeyeseenegeregenerosengerejoyeeneryenories
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