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________________ ५२६ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ नव सोल कसाया पन, रि जोग इअनत्तरा उसगवमा ॥ ग चन पण ति गुणेसु, चन ति ७ ग पञ्च बंधो ॥ ५५ ॥ अर्थ-नव के नव नोकषाय एटले हास्य षट्रक तथा त्रण वेद, एवं नव तथा सोलकसाया के अनंतानुबंधीयादिक शोल कषाय. ए शोल कषाय सर्व कर्म प्रकृ. तिना रसबंधना हेतु बे, केम के कषायविशेषे रसविशेष होय. ते जणी ए विशेषबंधहेतु जाणवा. ए पच्चीश कषाय कह्या. तथा पनरिजोग के मनना चार, वचनना चार अने कायाना सात, एवं सर्व मली पंदर योग जे जे, ते प्रदेशबंधना हेतु ले. एवं मिथ्यात्व पांच, अविरति बार, कषाय पञ्चीश, तथा योग पंदर, श्व के ए सर्व मली चार मूल हेतुना उत्तराऊ के उत्तरनेद, सगवला के सत्तावन होय. एणे करी जीवने कर्म बंधाय. जेम घमनालें करी तलावमाहे पाणी श्रावे, तेम ए पण कर्म भाववानां बारणां जाणवां, तेजणी ए सत्तावनतुं नाम, श्राश्रव पण कहीये. हवे चौद गुणगणे मलबंधहेतु कहे . अहींत्रीजा पदनी संख्या, चोथा पदनी संख्या, अनुक्रमें जोडीयें, तेवारे ग के एक मिथ्यात्वगुणगणे एनी साथे चज के चउपद जोमीयें, तेवारें एक मिथ्यात्वगुणगणे कर्मबंध चतुःप्रत्ययि होय, एटले एक मिथ्यात्व, बीजो अविरति, त्रीजो कषाय अने चोथो योग. ए चार मूल कारणे करी बंध होय, हवे चल के एक साखादन, बीजुं मिश्र, त्रीजु अविरति, चोधुं देशविरति, ए चार गुणगणे ति के० त्रिप्रत्य यि कर्मबंध होय. श्रहीयां मिथ्यात्व टल्युं माटें एक मिथ्यात्व विना अविरति, कषाय अने योग, ए त्रण हेतुयें करी बंध होय. तथा पण के एक प्रमत्त, बीजु अप्रमत्त, त्रीजुं अपूर्वकरण, चोथु बादरसंपराय, अने पांचमुं सूक्ष्मसंपराय, ए पांच गुणगणे एक कषाय अने बीजा योग, ए बे मूलबंध हेतुयें करी कर्मबंध होय, ते जणी मु के हिकप्रत्ययि बंध जाणवो. वहीं अविरतिपणुं पण टट्यु, अने तिगुणेसु के एक उपशांतमोह, बीजु क्षीणमोह, अने त्रीजु सयोगी, ए त्रण गुणगणे ग के एक योग पञ्चउँबंधो के प्रत्ययिर्डज बंध जाणवो. केम के अहींयां कषाय टल्यो, माटें मात्र एक योगें करीज कर्म बंधाय . अने चौदमे गुणगणे ए पूर्वोक्त चार हेतुमांहेलो एक पण हेतु नथी, माटें हेतुने अनावें बंध पण न होय. इति समुच्चयार्थः ॥ ५५॥ ॥ हवे एकसो ने वीश उत्तर कर्मप्रकृति श्राश्रीने मूल बंधहेतु विचारे ले.॥ चन मित्र मित्र अविरश, पञ्चश्मा साय सोल पणतीसा ॥ जोग विणु ति पच्चश्या, दारग जिण वऊ सेसा ॥५६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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