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________________ ५१४ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ जेटला प्रदेश होय, तेटला वैमानिक देवता बे. एम सर्व नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी, अने वैमानिक देवता मलीने नारकीयकी असंख्यातगुणा . ए रीतें मुअसंखा के मनुष्यथकी नारकी अने नारकीयकी देवता, ए बे असंख्यातगुणा अनुक्रमें एक बीजाथी जाणवा. ते देवताथकी तिरिश्रा के तिर्यंच अणंतगुणा के अनंतगुणा बे. केमके ते तिर्यचाहे वनस्पतिना जीव, निगोदिया ते अनंता . ए अनुक्रमें अहीं असंख्याताना असंख्याता नेद , श्रने अनंता नेद डे माटे उक्त विरोध जाणवा नहीं. ए गतिर्नु अल्पबहुत्व कयु. इति समुच्चयार्थः॥४॥ पण चनति एगिंदी, थोवा तिन्नि अदिया अणंत गुणा ॥ तस थोव असंखग्गी, न जलानिल अहिअ अणंता॥४१॥ अर्थ-बीजी इंजियमार्गणामध्ये सर्वथी थोवा के थोमा पण के० पंचेंजिय जीव, जे जणी सातराज प्रमाण घनीकृत लोकनी एक प्रदेशनी सूची श्रेणीना असंख्येय योजन कोडाकोमी प्रमाण तेना जेटला श्राकाश प्रदेशराशि तेटला पंचेंजिय जीव बे, ते थकी कांइएक अधिका जिहांसुधी बमणा न होय त्यांसुधी विशेषाधिक कहीये. तेटला चउ के० चौरिंघिय जीव, ते थकी विशेषाधिक ति के तेंजिय जीव, ते थकी विशेषाधिक 3 के बेंजिय जीव, ए रीतें चौरिंजिय, तेंजिय अने प्रिय, ए तिनि के त्रण जीवराशि अहिया के अनुक्रमें एक बीजाथी अधिका अधिका जाणवा, अने ते बेंजिय जीव थकी एगिंदी के एकेंजिय जीव, अणंतगुणा के अनंतगुणा जाणवा.जे जणी एकेजियमांहे वनस्पतिकाय आवे, ते मध्ये निगोदीआजीव पण श्रावी गया. माटें ते सर्व त्रसश्री अनंतगुणा होय. ए बीजी इंजियमार्गणायें अल्पबहुत्व विचाऱ्या. हवे त्रीजी कायमार्गणामध्ये तसथोव के सर्वश्री थोमा त्रस कायिथा जीव जे जणी घनीकृत लोकनी असंख्य योजन कोटा कोटी प्रमाणनी प्रदेशरा शिप्रमाण त्रस जीव जे. ते थकी असंखग्गी के अग्निना जीव असंख्यात गुणा बे, केम के असंख्य बोकाकाश प्रदेशप्रमाण बे, ते माटे. तथा तेथी नूजलानिलअहिथ के० पृथवीकायिथा जीव विशेषाधिक बे. ते थकी अपका यिथा जीव, विशेषाधिक बे. ते थकी श्रनील एटले वायुकायिथा जीव विशेषाधिक . ए चार कायना जीवनुं प्रमाण, सूत्रने विषे असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण अविशेषे कडं . पण असंख्याताना असंख्याता नेद . तेमाटें अल्पबहुत्व घटे . तेथकी वली वनस्पति कायना जीव अणंतो के अनंतगुणा जाणवा, जे नणी निगोदीया जीव अनंता , माटें. ए त्रीजी कायमार्गणायें अल्पबहुत्व कह्यं ॥ इति समुच्चयार्थः ॥४१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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